"माँ" को शब्दों मे बयां करना नामुमकिन है,
पर कुछ एहसासों को अल्फ़ाज़ मे पिरोने की कोशिश की है,
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जब कभी मुझ पे मुसीबत ये हवा लाती हैं,
तब बचा के मुझे बस माँ की दुआ लाती हैं ।
देख लेती है अगर धूप मे चलता मुझको,
दौड़ कर साये मे वो मुझको बुला लाती है ।
माँ की लोरी के वो अल्फ़ाज़ मुझे याद हैं सब,
आज भी नींद मुझे उसकी सदा लाती है ।
कितनी पी जाऊँ मै कुछ नहीं होता है मुझे,
माँ के ही हाथ से तासीर दवा लाती है ।
मंज़िलें जितनी भी मिलती हैं ये रोशन तुझको,
इन मुकामात पे बस माँ की दुआ लाती है । ....... "Roshan"
Comment
Nagaich ji
कितनी पी जाऊँ मै कुछ नहीं होता है मुझे,
माँ के ही हाथ से तासीर दवा लाती है ।
badhiya rachna pr badhaai
जब कभी मुझ पे मुसीबत ये हवा लाती हैं,
तब बचा के मुझे बस माँ की दुआ लाती हैं।
वाह जनाब क्या कहने...आप की इस खूबसूरत ग़ज़ल ने मुनव्वर राणा की ग़ज़लों की याद दिला दी। एक एक शेर में माँ की अहमियत और प्यार को उजागर कर रहे है। इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए आप मेरी दिली मुबारकवाद कुबूल करें !!
आदरणीय नगाइच जी , सादर
मंज़िलें जितनी भी मिलती हैं ये रोशन तुझको,
इन मुकामात पे बस माँ की दुआ लाती है
शानदार अभिव्यक्ति , बधाई
Mahima Shree sahiba, आपको मेरी ग़ज़ल पसंद आयी और आपने मेरी हौसला अफज़ाई की , आपका बहुत बहुत शुक्रिया...
JAWAHAR LAL SINIGH ji आपको मेरी ग़ज़ल पसंद आयी और आपने मेरी हौसला अफज़ाई की , आपका बहुत बहुत शुक्रिया...
जब कभी मुझ पे मुसीबत ये हवा लाती हैं,
तब बचा के मुझे बस माँ की दुआ लाती हैं ।
माँ की लोरी के वो अल्फ़ाज़ मुझे याद हैं सब,
आज भी नींद मुझे उसकी सदा लाती है ।
मंज़िलें जितनी भी मिलती हैं ये रोशन तुझको,
इन मुकामात पे बस माँ की दुआ लाती है ।
आदरणीय बहुत सी सटीक और सुंदर अभिवयक्ति .. बधाई स्वीकार करें
देख लेती है अगर धूप मे चलता मुझको,
दौड़ कर साये मे वो मुझको बुला लाती है ।
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