आज 31 मई विश्व तम्बाकू विरोधी दिवस पर एक विशेष रचना
सुट्टों ने सोखा जिस्म, सेहतमन्दगी गई
धुंए का शौक लग गया तो ज़िन्दगी गई
छुप छुप के पीना छोड़, खुल्लेआम पी रहे
माँ की लिहाज़, बाप से शरमिन्दगी गई
गुटखा चबाने वाले की पिचकारी गज़ब थी
धोयी बहुत दीवार, पर न गन्दगी गई
ज़र्दा चबा चबा के मुँह को सन्त कर दिया
अब स्वाद और मसालों की पसन्दगी गई
अलबेलाजी दिन रात खोहों खोहों खांसते
पूजा, हवन, नमाज़ गई, बन्दगी गई
जय हिन्द !
Comment
नहले दहले तो सब अलबेला भाई जी के ही हैं, मेरी तुकबन्दियाँ तो दुग्गी-तिग्गी ही हैं राजेश कुमारी जी
दहला तो आपने मारा था राजेश जी, प्रभाकर जी ने तो इक्का ही टिका दिया ....अब मेरे पास तो जोकर भी नहीं...हा हा हा
देख लो योगराज प्रभाकर जी, आपने "वो" स्वीकार नहीं की तो मैंने "ये" लिख दी....हम भी बालक ज़रा जिद्दी टाइप के हैं .....मानेंगे नहीं घुच्ची में अन्टारे डाले बिना......{ अन्टारे यानी कांच की वे गोलियां जिससे बचपन में आप भी खेले होंगे }
आपकी यह बात दिल में उतर गई कि हास्य अगर सन्देश दे, तभी उसकी सार्थकता है . माशाल्लाह अपे शे'र तो गज़ब ढा गये......बधाई भाई जी....
देखा पकड़ लिया ना!!वैसे भी आप फिल्म और टीवी कलाकार जिस चीज का ऐड देते हैं वो खुद कभी इस्तमाल नहीं करते |
वाह योगराज जी इसे कहते हैं नहले पे देहला
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आद. अलबेला जी, बहुत बढ़िया कहा है. असली मिजाह वो जो साथ में सन्देश भी देता हो, वो ही बात आपकी रचना से नुमाया हो रही है, मेरी दिली मुबारकबाद स्वीकारें, आपकी इस ग़ज़ल के नाम मेरी दो तुकबन्दियाँ हाज़िर हैं:
कमरे को बना डाला उसने थूकदान सा
कुछ इस क़दर ऊंचाई पर बेहूदगी गई
ताक़त की गोलियां भी, करेंगी ना फायदा
सिगरेट जो लग गई, तेरी मर्दानगी गई
लाजबाब सम सामायिक रचना आज के दिवस के लिए ही नहीं हमेशा के लिए सच बताइये खत्री जी आप सिगरेट ???
शुक्रिया संदीप कुमार पटेल साहेब, बहुत बहुत शुक्रिया
आज ३१ मई थी तो सोचा....आज कुछ तूफानी करते हैं.....हा हा हा
सराहना के लिए आभारी हूँ
आज के परिवेश में लिखी गयी बेहतरीन ग़ज़ल आपकी क्या बात है साहब बहुत खूब
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