गीत:
थिरक रही है...
संजीव 'सलिल'
*
थिरक रही है,
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*
बाधाओं की चट्टानों पर
शिलालेख अंकित प्रयास के.
नेह नर्मदा की धारा में,
लहर-भँवर प्रवहित हुलास के.
धुआँधार का घन-गर्जन रव,
सुन-सुन रेवा सिहर रही है.
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*
मौन मौलश्री ध्यान लगाये,
आदम से इन्सान बनेगा.
धरती पर रहकर जीते जी,
खुद अपना भगवान गढ़ेगा.
जिजीविषा सांसों की अप्रतिम
आस-हास बन बिखर रही है.
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*
अक्षर-अक्षर अंकित करता,
संकल्पों की नव चेतनता.
शब्द-शब्द से झंकृत होती,
भाव, शिल्प, लय की नूतनता.
पुरा-पुरातन चिर नवीन बन
आत्म वेदना निखर रही है
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
*
Comment
वाह ! कितनी सुन्दर कविता ! महादेवी वर्मा का शब्द शिल्प याद आ गया ! जितना पढ़ो और पढ़ने का मन करता है !
बाधाओं की चट्टानों पर
शिलालेख अंकित प्रयास के.
नेह नर्मदा की धारा में,
लहर-भँवर प्रवहित हुलास के.
धुआँधार का घन-गर्जन रव,
सुन-सुन रेवा सिहर रही है.
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
सच ! इसे कहते है गुरु की गुरुता ! आनंद ही अनद !
मौन मौलश्री ध्यान लगाये,
आदम से इन्सान बनेगा.
धरती पर रहकर जीते जी,
खुद अपना भगवान गढ़ेगा.
जिजीविषा सांसों की अप्रतिम
आस-हास बन बिखर रही है.
मृदुल चाँदनी थिरक रही है.
सुन्दर भाव सुन्दर रचना हेतु बधाई, आदरणीय सलिल जी, सादर अभिवादन के साथ.
गीत रचा अनमोल गुरूजी.
सरस मृदुल हैं बोल गुरूजी.
भाव शिल्प लय सब मन हरते,
रचा हृदय से तोल गुरूजी.
शब्द-शब्द से वीणा के सुर,
मातु कृपा ज्यों बरस रही है.
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
आदरणीय अलबेला जी से मैं भी सहमत हूँ |
सादर
आपका आशीर्वाद शिरोधार्य सलिल जी.........
सादर अभिवादन
छंद -छंद मनहर अलबेला,
घाट-बाट साँसों का मेला.
पण्डे-झण्डे, झगड़े-डण्डे,
रेलपेल औ' ठेलमठेला.
मिलन-विरह की कथा-कहानी
सिकता कण बन सिहर रही है.
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
आपकी गुणग्राहकता को नमन.
आदरणीय संजीव सलिल जी,
आपका यह अभिनव, अनुपम और अनूठा गीत एक बार नहीं, अनेकानेक बार बांचा ...हर बार आनंद में वृद्धि होती गई . यों प्रतीत हुआ मानो
काव्य की देवी साक्षात् दर्शन दे रही है और मैं मंत्रमुग्ध सा एकटक निहार रहा हूँ .
यों लगा जैसे काव्य-सृजन के उस श्रेष्ठतम काल में पहुँच गया जहाँ पन्त, निराला, दिनकर, रंग, फ़िराक़, बच्चन और द्विवेदी जैसे मनीषियों की सुगंध प्रसरी है.
आपकी लेखनी के प्रति नतमस्तक मैं इस गीत का ख़ूब ख़ूब अभिनन्दन करता हूँ
बाधाओं की चट्टानों पर
शिलालेख अंकित प्रयास के.
नेह नर्मदा की धारा में,
लहर-भँवर प्रवहित हुलास के.
धुआँधार का घन-गर्जन रव,
सुन-सुन रेवा सिहर रही है.
मृदुल चाँदनी थिरक रही है...
_______________हम जैसे नौसिखियों के लिए प्रेरणा का उजाला उपलब्ध करने वाले इस गीत के शब्द-सौन्दर्य और सरस शिल्प मेरा को शत शत नमन
जय हो !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online