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बहुत तेज़ है मेरी लुगाई बाबाजी

 

ओ बी ओ परिवार के समस्त स्वजनों को अलबेला खत्री का विनम्र प्रणाम .

एक शो  और एक शूटिंग के  चलते मैं  तीन दिन  सूरत से बाहर रहा . इसलिए यहाँ हाज़िरी नहीं दे पाया . परन्तु  अच्छा ये रहा कि  महा उत्सव  में एक कुंडलिया और एक  घनाक्षरी  मैंने  टी वी पर भी सुनाई तो लोगों ने  ख़ूब सराहा .  बाबाजी वाली एक ग़ज़ल भी  मैंने  "बहुत ख़ूब" प्रोग्राम में प्रस्तुत कर दी  अगले हफ्ते उसे आप दबंग चैनल पर देख सकेंगे. एक  तुकबन्दी  आज पुनः आपकी सेवा में रख रहा हूँ .

सादर




घर-घर से आवाज़ ये आई बाबाजी
मार  ही  देगी  ये महंगाई बाबाजी

जनता जब से जूत चलाना सीख गई
नेताओं   की  शामत   आई  बाबाजी

उसके आगे कोई बहाना ना चलता
बहुत तेज़ है  मेरी  लुगाई  बाबाजी

जाने क्यों मुम्बई में घर से भी ज़्यादा
ओ बी ओ की  याद थी  आई  बाबाजी

हमने सुना है सारी ख़ुदाई एक तरफ़
एक  तरफ़  जोरू  का  भाई  बाबाजी

35 लाख का टायलेट क्यों न हो इनका
सत्ता   में    हैं    ये    इंकाई    बाबाजी

एक बार तुम राजनीति में घुस जाओ
फिर कितनी भी  करो कमाई बाबाजी

बाहर से तो  हँसा  रहा  है 'अलबेला'
लेकिन  भीतर  भरी रुलाई  बाबाजी


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Comment

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 13, 2012 at 11:07pm
बड़े भैया, आपने क्या बात कही। हमेशा की तरह फिर से गर्दा परफॉरमेँस। बहुत मजा आया। बधाई हो।
(बिहार मेँ जोरदार-धमाकेदार परफॉरमेँस को ही "गर्दा परफॉरमेँस" कहते हैँ)
Comment by Bishwajit yadav on June 13, 2012 at 10:51pm
प्रणाम अलबेला जी
बधाई हो बहुत सुन्दर बाबा जी


पढ के मजा आ गया बाबा जी
मै कहता हुँ जय हो बाबा जी
Comment by UMASHANKER MISHRA on June 13, 2012 at 10:26pm

प्रिय अलबेला जी आपकी रचनाएँ सभी स्तर के लोगों के लायक रहती है

हर दिल अजीज को पसंद आने वाली. खास को आम में देने वाली और

आम को खास बना देने वाली|आपके निचे लगे चित्र में आदरणीय प्रिय

स्व.शैल जी को देख कुछ यादें (उनसे मुलाकात की) ताज़ा हो गई

घर-घर से आवाज़ ये आई बाबाजी
मार  ही  देगी  ये महंगाई बाबाजी-  ये आवाज उठती ही रहना चाहिए बहुत जरुरी है सचमुच महंगाई मार ही देगी

जनता जब से जूत चलाना सीख गई
नेताओं   की  शामत   आई  बाबाजी -नेताओं को सबक सिखाने वाली पक्ति है उन्हें याद  दिलाने सही फरमाया

एक बार तुम राजनीति में घुस जाओ
फिर कितनी भी  करो कमाई बाबाजी - गहरा व्यंग छिपा है

बाहर से तो  हँसा  रहा  है 'अलबेला'
लेकिन  भीतर  भरी रुलाई  बाबाजी-यही एक सच्चे इंसान की पहचान है

एक से बढकर एक -अलबेला जी एक नही अनेक मंच आप पर कुर्बान हो जायेंगे

बहेतरीन है आपका ये अखंड काव्य

 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 13, 2012 at 9:46pm

जनता जब से जूत चलाना सीख गई
नेताओं   की  शामत   आई  बाबा जी  !! क्या बात है अलबेला जी ॥बहुत खूब!करारा तंज़ ...बधाई हो !

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