दाएँ से पिंडी रूप में माँ काली, माँ वैष्णो व माँ सरस्वती |
माँ वैष्णों देवी के दर्शन की इच्छा लिए अपनी माँ, दोस्त व उसकी माँ के साथ जम्मू रेलवे स्टेशन पर उतरा. कटरा रवाना होने से पहले हल्का-फुल्का नाश्ता किया, फिर सोचा कि एक जोड़ी चप्पल ली जाए. दुकान में पहुँचा तो 30 रूपये की चप्पलों का दाम था 130 रूपये. दाम फिक्स्ड था कोई कंसेशन नहीं. खैर हम कटरा की ओर बढे. पहाड़ों के मनोरम दृश्यों का आनन्द लेते हुए हम कटरा पहुँचे. जैसे ही हमने कटरा की जमीन पर पैर रखे हमारे सामने दलाल प्रकट हो गये व होटलों व दुकानों के बारे में जानकारी देने लगे. हम दलालों के चंगुल में फँसे बिना रैस्टोरैंट की ओर बढ़ लिए यहाँ दोपहर का महँगा भोजन किया या कहें कि करना पड़ा. इसके बाद माता वैष्णों देवी को चढ़ाने के लिए प्रसाद व श्रृंगार का सामान खरीदने के लिए एक दुकान में पहुँचे. दुकानदार ने सामान के औने-पौने दाम लगाये. यात्रा स्लिप लेकर हम बाढ़ गंगा पहुँचे. यहीं से यात्रा आरंभ होनी थी. मैं और मेरा दोस्त तो पैदल चल लेते, किन्तु हम दोनों की माताएँ पैदल यात्रा में असमर्थ थीं. सो हमने विचार किया कि यात्रा के लिए किराए पर घोड़े कर लिए जायें. घोड़े वालों से बात की तो वे तीन गुना दाम पर अड़े रहे. मैंने सी.आर.पी.एफ. अधिकारियों से इस विषय में शिकायत की, किन्तु उन्होंने सहायता देने में अपनी असमर्थता दिखाई. इसके उपरांत वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के अधिकारियों से भी मिला, किन्तु कोई हल नहीं निकला. तब ऐसा आभास हुआ कि कहीं सी.आर.पी.एफ. व वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की घोड़े वालों से मिली भगत तो नहीं. खैर हम घोड़े पर सवार होकर माँ वैष्णों के दर्शन को चल पड़े. घोड़े पर बैठकर पहाड़ चढ़ते हुए जब नीचे खाई की ओर नज़र जाती थी तो मन रोमांचित सा हो उठता था. रात में ऊँचाई से देखने पर कटरा जगमगाता हुआ बड़ा ही सुन्दर दिख रहा था. बीच-बीच में हम ब्रेक लेते रहे और खानपान करते हुए दुकानदारों द्वारा लुटते रहे. आखिरकार हम मुख्य भवन के पास पहुँचे. हमने सोचा कि पहले रात का भोजन ले लिया जाये. वहीँ पर स्थित ही एक छोटे से होटल में हमने भोजन किया जो कि बहुत महंगा, बिलकुल बेकार व बेस्वाद था. हद तो तब हो गई जब 20 रूपये के सलाद के रूप में हमें खीरे के कुछ टुकड़े पेश कर दिए गए. हमने उस रद्दी होटल के संचालक से अपना विरोध जताया तो उसने टका सा जवाब दिया कि बाबू पहाड़ पर चढ़ते-चढ़ते हर चीज महँगी हो जाती है. हमने नहा धोकर करीब 4 बजे सुबह माता वैष्णो देवी के दर्शन किये और भैरों बाबा को सलाम ठोंकने निकल पड़े. मान्यता यह है कि यदि माँ वैष्णो देवी के दर्शन के बाद भैरों बाबा के दरबार में हाजिरी नहीं लगाई तो समझो कि माँ वैष्णो देवी के दर्शन अधूरे रह गए. भैरों बाबा के दर्शन कर हम वापस कटरा की ओर चल दिये. हम दोनों की माताओं ने निश्चय किया कि वापसी में पैदल ही चलेंगी. वापसी में हम सभी बीच-बीच में रुककर आराम करते रहे और दुकानों से थोड़ा बहुत जलपान करते रहे और दुकानदारों के मनमाने दाम चुकाते रहे. अर्धकुमारी तक आते-आते मेरी माँ के पैरों ने जवाब दे दिया और दर्द के कारण आगे बढ़ने में अपनी असमर्थता दिखा दी. सो हमें घोड़े किराये पर लेने पड़े. उन्होंने तीन गुना दाम की बजाय ढाई गुना दाम ही हमसे वसूले. कितने भले मानस थे वे घोड़ेवाले. घोड़े पर उछलते हुए हम चारों प्राणी बाढ़ गंगा तक पहुँचे. वहाँ पहुँचकर हमने ऑटो करने के बारे में सोचा तो कोई भी ऑटोवाला 3 कि.मी.की दूरी के लिए 200 रुपये से कम में राजी नहीं हुआ. मजबूरी में हमने ऑटो पकड़ा और कटरा पहुँच गये. वहाँ भोजन करने के बाद हमने दिल्ली के लिए बस पकड़ी और कटरा भूमि को प्रणाम कर चल पड़े. लौटते हुए मन गुनगुना रहा था, "लुटेरे हैं दरबारी पहाड़ों वाली के." माँ वैष्णो देवी जाने क्यों अपने दरबारियों के लुटेरेपन को देखकर भी शांत बैठी हैं. कहीं यह प्रलय से पहले की शांति तो नहीं?
Comment
योगराज प्रभाकर जी हम तो दूसरी बार ही वैष्णों देवी के दर्शन हेतु गए थे, किन्तु आप तो अक्सर जाते रहते होंगे. सो वहाँ की अव्यवस्था से भली-भांति परिचित होंगे. इस यात्रा के दौरान मन इतना व्यथित हुआ कि यह संस्मरण लिख डाला.
आभार....
प्रदीप कुमार जी, अलबेला खत्री जी टिप्पणियों के लिए आभार...
DURBHAAGYA HAI
SHARM KI BAAT HAI
बहुत अफ़सोस होता है हिन्दू धर्म स्थलों के आस पास ऐसी लूट खसूट के बारे में जानकर. वैसे थोड़ी बहुत लूट खसूट तो हर जगह ही होती है, मगर जम्मू कटड़ा जितनी नहीं. कुछेक का तो ज़िक्र आपने अपने आलेख में कर दिया लेकिन इसके इलावा भी बहुत सी बातें हैं. जिनका ज़िक्र मैं भी करना चाहूँगा.
नवरात्रों तथा अमरनाथ यात्रा के समय जम्मू क्षेत्र में यह लूट अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाती है. ५०० रूपये रोज़ में मिलने वाला कमरा ५००० तक में दिया जाता है, सर्दियों में गर्म पानी की एक बाल्टी के लिए १०० रुपये मांगे जाते है. यह ही नहीं, कई दफा तो आधी रात के समय होटल वाले दरवाज़ा खटखटा कर किसी और यात्री को कमरे में जगह देने के आदेश भी सुना देते हैं, और इनकार करने पर कमरा खाली करने की धमकी तक दे डालते हैं. एसी कमरों के एसी अक्सर खराब होते हैं, ठीक भी किये जाते हैं तो कई-कई घंटे के बाद. रोड साइड ढाबों से लेकर बड़े होटलों तक में लोग यात्रियों को लूटने की फिराक में रहते हैं. गंदे बर्तन या बासी खराब खाने की शिकायत सुनने को कोई तैयार नहीं. पान, सिगरेट तो क्या, समाचार पत्र तक भी प्रिंटेड मूल्य (जोकि बाकि देश के मुकाबले पहले ही ज्यादा होता है) से दुगने-तिगुने दामों पर बेचे जाते हैं. बाज़ार में दुकानदार आपको माता की कसम खाकर कागज़ी वेरायटी दिखा कर पत्थर जैसे अखरोट दे देते हैं जिसका पता आपको घर पहुँच कर चलता है.
माता के भवन में पहुँचने के बाद पुजारी और तैनात कर्मचारी धक्के दे दे कर आगे जाने को कहते हैं, सैकड़ों हजारों मील का सफ़र तय करके आए श्रद्धालु को दर्शन भी नसीब नहीं होते. हाँ, अगर आप पहले से ही अपने हाथ में ५०० या १००० का नोट पकड़ उसका दर्शन पुजारी पार्टी को करवा दें और पैसा सरकारी गोलक में न डाल कर बाहर ही रख दें तो बाकायदा आपको पिंडी के दर्शन भी करवाए जायेंगे और संभव है की आपके सर पर बाकायदा लाल चुन्नी या कलाई पर मन्त्र पढ़कर मौली भी बाँध दी जाये. वहां से लुटने के बाद बस यही मन से निकलता है कि हे महामाई इन लुटेरों को सदबुद्धि दे.
darshan ho gaye............bahut badi baat hai
जय माता दी , दर्शन कराया आभार
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