For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- १७

तेरेही रंगमें रंगी खुदाई दिखती है

दुनिया तमाम तमाशाई दिखती है

 

कोई राहगुज़र नयी नहीं लगतीहै

एक- एक राह आजमाई दिखती है

 

ये कैसा शोर है घरमें नयानया सा

छतपे एक चिड़िया आई दिखती है

 

दूरसे महसूस किया बिछडनेका पर

ज़िंदगानी करीबसे पराई दिखती है 

 

दिल क्यूँ चुप है येतुम क्या जानो 

गरीबकी बस्ती है सताई दिखती है

 

उंगलियां तेरी चार मिसरे रुबाई के

कोई गज़ल तिरी कलाई दिखती है

 

अस्ल कब नज़र आया है नज़रको

देखने का ऐब है परछाई दिखती है

 

जबीं पे गो नक्श हैं जीने मरने के

आँखमें अज़लकी तन्हाई दिखती है

 

बेबसी हैकि तज़ब्जुब छुपालेते है

दूसरोंको येमेरी पारसाई दिखती है

 

राज़ मुख्तलिफ़ है सबकी हकीकत

देखने को बस इज्तेमाई दिखती है

 

राज़ नवादावी

भोपाल, रात्रिकाल २२.०६, १९/०६/२०१२

 

अज़लकी तन्हाई- सृष्टि की प्रारंभिक नीरवता; तज़ब्जुब- असमंजस, उहापोह, दुविधा, शंका; पारसाई- पवित्रता; मुख्तलिफ़- अलग-अलग; इज्तेमाई- सामूहिक, एक जैसी.

 

Views: 483

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 10:15am

आदरणीया एवं मोहतरमा रेखाजी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने मेरी ग़ज़लों को पढ़ा और मुझे प्रेरणा दी. सदैव याद रखूंगा आपका ये स्नेह. आपका ही, राज़ नवादवी! 

Comment by Rekha Joshi on June 28, 2012 at 2:13pm

आदरणीय राज़ जी ,

कोई राहगुज़र नयी नहीं लगतीहै

एक- एक राह आजमाई दिखती है ,उम्दा ग़ज़ल ,आपने तो गजलों की एक लड़ी पिरो कर पोस्ट कर दी ,आपकी हर रचना बधाई के योग्य है ,लिखते रहें  

 

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 28, 2012 at 11:24am

आदरणीय राज नवादवी जी हमारे जज्बात को अन्यथा ना लें आपकी सभी गजल उम्दा है

आपने एक साथ इतनी गजलें डाल दी की हमें आपकी कारगुजारी पर हंसी आ गई हुजुर एक एक गजल

को समझने के लिए काफी समय चाहिए अतः आपसे निवेदन है की गजलों को पोस्ट करने में फासला रक्खें

अस्ल कब नज़र आया है नज़रको

देखने का ऐब है परछाई दिखती है....कितनी गहरी बात कही है आपने इसको समझने में हमें घंटों लगे

रचना बेहतरीन है आपके गजलों की प्रस्तुति हमें खूबसूरत हास्य मय लगी थी अतः  क्षमा प्रार्थी है हम

हमरा उद्देश्य केवल यह है की आप अन्य रचनाकारों के बारे में भी सोंचे

साथ उम्दा रचना के लिए बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on June 27, 2012 at 11:31pm

खूबसूरत हास्य गज़ल

Comment by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 9:40pm

जनाब उम्दा ख्यालात को पैरहन दिया है आपने, तुकबंदी तो नाफहमों को लगेगी. बहुत खूब.

Comment by Albela Khatri on June 27, 2012 at 9:35pm

दोस्ती शाइर से हो तो दाद देनी चाहिए
इस ज़मीं पर अपने हाथों खाद देनी चाहिए
हौसले से बढ़ के कोई शै नहीं कायनात में
हो सके तो खुलके ये इमदाद देनी चाहिए

____हा हा हा हा

_______राज़ साहेब ये लो  तुकबन्दी हो गई...हा हा हा

Comment by राज़ नवादवी on June 27, 2012 at 9:12pm

वाह जनाब अलबेला साहेब, वाह! आपकी दाद का अंदाज़ मुर्दों में भी जाँ फूंक दे. सच, दिल को खुशी, जिगर को सुकून हुआ, आपके हर लफ्ज़ पे मैं आपका मम्नून  हुआ! 

- राज़ नवादवी 

Comment by Albela Khatri on June 27, 2012 at 7:54pm

क्या कहने  जनाब राज़ साहेब........
वाह !

दिल क्यूँ चुप है येतुम क्या जानो 

गरीबकी बस्ती है सताई दिखती है

 

उंगलियां तेरी चार मिसरे रुबाई के

कोई गज़ल तिरी कलाई दिखती है

___ग़ज़ल मुबारक़ !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service