For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- २९

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

तेरे शहर की सब अलामतें......

 

ये तेरे शहर की तमाम अलामतें

अजनबी हैं मेरे लिये

ये तेरे शहर की दूर तक फैली

अहलेज़र की पुरनूर बस्ती

ये आलीशान मकानों का हुस्नख़ेज़ तसल्सुल

ये ज़ुल्फेसियह सी बेनियाज़

आवारामनिश राहगुज़र

ये रौशनियों की दिलावेज़ जल्वागाह

ये ख़ला-ए-फैज़बख्श

ये फज़ा-ए-तमकनत

ये कारों की होशकुन तग़ोदौ

ये होटलों की रौनक़ोरौ

ये आस्माँ को छूती इमारतों की बुलन्दी

ये रवायात, ये मामूल, ये जीने की पाबन्दी

ये बाज़ारों में परीरूओं की क़दोकाविश

ये जिन्सीयात की इक और नुमाइश

ये तेरे शहर की सब अलामतें

अजनबी हैं मेरे लिये

मुझे इन इश्तेआरों में जीने की आदत नहीं

मुझमें वो फिक्र, वो दानिश, वो फितरत नहीं

मैं कहाँ सँभाल पाऊँगा

तेरी आसाइश के गिराँबार

किन हाथों से थामूँगा

तेरी इशरत की मताअ

किस बिना पे

तेरी हस्ती को तज़ल्ली दूँगा

यूँ ही ताउम्र

तझे झूठी तसल्ली दूँगा

तूने कहा है अगर तो ठीक ही कहा है

मैं इक राहनशीं बेख़ेश बशर

बे दस्तो पा-ए-दर

अहलेएवाँ के  ख़्वाब न देखूँ

 

© राज़ नवादवी

सोशल वर्क हॉस्टल, नई दिल्ली

(०६/०३/१९९३)

Views: 381

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on July 3, 2012 at 10:29pm

ज़रूर सौरभ पाण्डेय साहेब, ज़रूर. आपका मशविरा बिलकुल बजा है. 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 3, 2012 at 10:16pm

भाई राज़ जी, आपने मेरे कहे को मान दिया है, इस हेतु शुक़्रगुज़ार हूँ.  अपनी रचनाओं में प्रयुक्त क्लिष्ट और अप्रचलित शब्दों के मायने लिख कर एक रचनाकार अपनी रचना की संप्रेषणीयता को ही बढ़ाता है.

सादर

Comment by राज़ नवादवी on July 3, 2012 at 9:50pm
प्रिय एवं आदरणीय सौरभ जी, आपने सही फरमाया है कि लिखना इक सोच के सच का टूटा आइना ही है. मैं शर्मसार हूँ कि मैंने सकील लफ़्ज़ों के मानी नहीं लिखे. आइन्दा से ख्याल रखूंगा.
आपका ही. 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2012 at 3:16pm

नुमाया हर्फ़ इस बात की तस्दीक करते हैं कि सोचना लिखे हुए में पूरी तरह नहीं ढल पाता, मगर जो होता है वो कचोटता है.

एक गुज़ारिश :  आपने रचना में जिन अप्रचलित और क्लिष्ट शब्दों का इस्तमाल किया है वो मुझ जैसे पाठक का खुल्लमखुल्ला इम्तहान लेते लग रहे हैं.  क्लिष्ट शब्द चूँकि सापेक्ष हुआ करते हैं, सो लिखने वाले को शायद पता न चल पाये्, मगर अप्रचलित शब्दों को फिंगर आउट करना तो साहब आसान है.

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
5 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"आ. भाई सालिक जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सतरंगी दोहेः विमर्श रत विद्वान हैं, खूंटों बँधे सियार । पाल रहे वो नक्सली, गाँव, शहर लाचार…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई रामबली जी, सादर अभिवादन। सुंदर सीख देती उत्तम कुंडलियाँ हुई हैं। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
Chetan Prakash commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"रामबली गुप्ता जी,शुभ प्रभात। कुण्डलिया छंद का आपका प्रयास कथ्य और शिल्प दोनों की दृष्टि से सराहनीय…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"बेटी (दोहे)****बेटी को  बेटी  रखो,  करके  इतना पुष्टभीतर पौरुष देखकर, डर जाये…"
22 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service