For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २०

पूरा हो या अधूरा अरमाँ निकल ही जाता है

करीब आ के दूर कारवाँ निकल ही जाता है

 

जो न बदलें हालात तो खुद को बदल डालो

जंगलोंसे निकलो आस्माँ निकल ही जाता है

 

रहेंगे कबतक मुन्हसिर गुंचे खिलही जाते हैं

कभीतो ज़िंदगीसे बागवाँ निकल ही जाता है

 

पत्थरोंसे भी मिट जाती हैं इबारतें समय पे

हो गहरा दिल का निशाँ निकल ही जाता है

 

मसीहा आते हैं इम्तेहा-ए-गारतपे हर दौर में

दौरेज़ुल्मियत से ये जहाँ निकल ही जाता है

 

राहीमें हो हौसला तो राहकी तवालत क्या है

वो चलके खिरामाँखिरामाँ निकल ही जाता है

 

बिखरना हुस्नकी अदा है ज़ुल्फेजीनत से भी

इक रेशा-ए-काकुले-पेचाँ निकल ही जाता है

 

गो लंबा है नफ़सका कयाम जिस्ममें लेकिन

मीयाद पूरी हुईतो मेहमाँ निकल ही जाता है

 

रहे फ़कीरकी तरह दे दिया जो दे सकते थे

ज़रूरत में किया अहसाँ निकल ही जाता है 

 

कितनीभी करूँ तदबीर कि न छोडूंगा इसबार

हाथ आके वो गुलेबदामाँ निकल ही जाता है 

 

उफ़ कि क्या दोशीज़गी-ए-बशक्लेक़यामत है

तुझे देखके ये कॉलेजुबां निकल ही जाता है

 

नहो पास माया खानेको या आशियाँ रहनेको

करम खुदाका कोई मेज़बां निकलही जाता है

 

न घबराओ इब्तिदाए-इश्क की रुसवाइयों से

लगती है आग तो धुआँ निकल ही जाता है

 

मजहबी झगड़ेको क्या सबात आलमे फ़नासे

हिंदू हो या कि मुसलमाँ निकल ही जाता है

 

दिल न हो तो बज़्मेमुसर्रत भी क्या चीज़ है

दिलहो तो खुशीका सामाँ निकल ही जाता है

 

लगता है तवील जो होते हैं सरे राहेमुश्किल

पे सब्र करो राज़ दौरेपरेशाँ निकलही जाता है

 

© राज़ नवादवी

पुणे, २८/०१/२०१२

लफ़्ज़ों के मानी-

 

मुन्हसिर- निर्भर; गुंचे- कली; इबारत- लिखावट; इम्तेहा-ए-गारतपे- विनाश की पराकाष्ठा पे; दौरेज़ुल्मियत से- अंधकार के युग से; तवालत- लम्बाई; चलके खिरामाँखिरामाँ- धीरे धीरे चलके ; ज़ुल्फेजीनत भी- सुन्दर ज़ुल्फ़ से भी; इक रेशा -ए-काकुले-पेचाँ- मुड़े हुए बाल का एक रेशा; नफ़सका कयाम जिस्ममें- साँसों का शरीर में प्रवास; मीयाद- तय समय; तदबीर- उपाय; गुलेबदामाँ- फूल के रंग वाला; दोशीज़गी-ए-बशक्लेक़यामत- क़यामत सी मारने वाली जवानी; कॉलेजुबां- मुंह के शब्द; माया- धन; करम- कृपा; इब्तिदाए-इश्क की रुसवाइयों से- शुरुआती प्यार की बदनामियों से;सबात- स्थाईत्व; आलमे फ़ना- मृत्युलोक;बज़्मेमुसर्रत- खुशी से लबरेज़ महफ़िल; सामाँ- कारण, उपादान कारण; तवील- लंबा;  

 

Views: 440

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on July 13, 2012 at 12:39am

रेखाजी, आपकी बधाई का दिल से शुक्रिया.! आपकी बातों से हमें मालूम हुआ, मेरे घर पे भी कोई जलता है दिया. 

आपका, राज़ नवादवी! 

Comment by Rekha Joshi on July 10, 2012 at 1:31pm

राज़ जी ,

जो न बदलें हालात तो खुद को बदल डालो

जंगलोंसे निकलो आस्माँ निकल ही जाता है,बहुत खूब ,खुद को बदलो जिंदगी के हालत बदल जाएँ गे ,बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service