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देखो !

उस चिड़िया के पंख निकाल आए

अब वो अपने पंख फैलाएगी

आसमानों के गीत गाएगी

बातें करेगी-

-गगनचुम्बी उड़ानों की !

तोड़ डालेगी-

-तुम्हारी निर्धारित ऊंचाईयां !

और उसकी अंगडाईयां

कंपा देंगी तुम्हारे अंतरिक्ष को !

 

वो देख आएगी

तुम्हारे सूरज में घुटता अँधेरा !

प्रश्न उठाएगी

तुम्हारे सूर्योदय पर भी !

 

फिर कौन पूजेगा -

-तम्हारे अस्तित्व को ?
कौन मानेगा -

-तुम्हारी प्रधानता ?

 

उसे दिखाओ -
-नुचे हुए पंख

सुनाओ उसे -

-बांज की झूठी कहानियां

-पंछी और जहाज की भ्रामक कथाएँ

उसे पिंजरे का महत्त्व समझाओ ,

असमान से जुड़ने मत दो !

रोको ! उसे उड़ने मत दो !

 

 

......................................... अरुन श्री !

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 20, 2012 at 11:13am

मेरे सुझाव पर अपनी सहमति देने के लिये आपका धन्यवाद, भाई अरुणजी.  यदि आप इस रचना पर पुनः कार्य करें तो यह एक अवश्य ठनीय रचनाओं में से होगी.  

Comment by Arun Sri on July 20, 2012 at 10:48am

सौरभ सर, बस इसी की तो जरूरत थी और प्रतीक्षा भी ! फिर से पढकर इसे और नुकीला बनाने का प्रयास करता हूँ !

सादर धन्यवाद !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 19, 2012 at 9:12pm

भाई अरुण जी, इस रचना ’लड़की’ पर दृष्टि अभी पड़ी है.  बहुत कुछ उभर कर सामने आया है. सामाजिक विडंबनाओं को स्वर देने का सुन्दर प्रयास हुआ है.

लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि असीम संभावनाओं से भरे प्रस्तुत भाव विशेष को कुछ और समय दिया गया होता.

हार्दिक शुभेच्छा.

Comment by Arun Sri on July 14, 2012 at 8:07pm

दीप्ती मैम , सराहना हेतु धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on July 14, 2012 at 8:06pm

राजेश कुमारी मैम , आकाश खुला है बेहतर है कि पहरे हटा लिए जाएँ ! मार्गदर्शक बना जाए ! इस व्यंग को आपने पसंद किया ! धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on July 14, 2012 at 8:04pm

सुरेन्द्र भ्रमर सर , पसंदगी के लिए धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on July 14, 2012 at 8:04pm

संदीप जी
रेखा मैम ........... आप सब का आभारी हूँ !

Comment by Arun Sri on July 14, 2012 at 8:03pm

अलबेला सर , आपके अमूल्य सुझाव और प्रसंशा के लिए धन्यवाद !

Comment by deepti sharma on July 12, 2012 at 10:42pm

बहुत गहन चिंतन है आपकी रचना में बहुत भाव पूर्ण रचना बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2012 at 10:28pm

बहुत उम्दा  शब्दों में बहुत गहन सोच को साकार करती रचना लड़कियों के लिए सोच को बदलना होगा उन्हें उन्मुक्त गगन में उड़ने देना होगा ...कविता में व्यंग्य के आधार से बहुत अच्छा सन्देश दिया है

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