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गज़ल - आदमी जो बेतुका है

वो अगर  मुझसे खफा है

हक है उसको क्या बुरा है

 

घोंसले  के साथ  जुडकर

एक  तिनका  जी  रहा है

 

जो अपरिचित  है नदी से

बाढ़   पर  वो  बोलता  है

 

है   यकीं   चारागरी   पर

हो  जहर  तो  भी  दवा है

 

देख  कर  मुँह  फेर लेना

कुछ  पुराना   आशना  है

 

टूट  ही  जाना  है  उसको

सच  दिखाता  आइना  है

 

जी  रहा   तुकबंदियों  को 

आदमी   जो   बेतुका   है

 

 

..................... अरुन श्री !

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Comment by Arun Sri on July 23, 2012 at 12:25pm

राज सर , पसंदगी के लिए शुक्रिया !

Comment by Arun Sri on July 23, 2012 at 12:24pm

अविनास सर , बहुत बहुत धन्यवाद !

Comment by राज़ नवादवी on July 21, 2012 at 8:30pm

घोंसले  के साथ  जुडकर

एक  तिनका  जी  रहा है

 बहुत अच्छे अरुन जी!  छोटी बह्र की छूती गज़ल! 

Comment by AVINASH S BAGDE on July 21, 2012 at 6:55pm

जी  रहा   तुकबंदियों  को 

आदमी   जो   बेतुका   है....wah...

....जो अपरिचित है नदी से बाढ़ पर वो बोलता है....अरुन श्री .बहुत कमाल के शेर हैं .

Comment by Arun Sri on July 21, 2012 at 11:58am

वीनस सर , बस यूँ ही कृपा दृष्टि बनाए रखिए ! :-))) :-)))

Comment by वीनस केसरी on July 21, 2012 at 3:54am

भाई अरुण जी आपकी ग़ज़लों में उत्तरोत्तर कहन और शिल्प आधार पर कसाव बढ़ा है 
मैं एक पाठक की हैसियत से संतुष्ट होता हूँ और मुझे क्या चाहिए
जब कभी कोई कमी देखूँगा तो जरूर कहूँगा

...............

एक बार का वाकया याद आ गया तो सुनाता चलूँ

मैं अपनी एक ताज़ा ग़ज़ल अपने शहर के एक उस्ताद शायर को सूना रहा था और सुनाने के बाद मैंने कुछ इस्लाह की गुजारिश की, मगर उन्होंने कहा कि "ग़ज़ल अच्छी है इस्लाह की जरूरत नहीं है"
मगर मैं जिद करने लगा तो उन्होंने एक वाक्य कहा था ---
"वीनस, भागते घोड़े को बेंत नहीं मारी जाती" ....

:))))))))))))))))))))))))))))))

Comment by प्रवीण कुमार श्रीवास्तव on July 20, 2012 at 11:03pm

बढ़िया ग़ज़ल सचमुच मज़ा आ गया.

Comment by Harash Mahajan on July 20, 2012 at 1:03pm

बहुत सुंदर अरुण श्रीवास्तव जी ....

Comment by Arun Sri on July 20, 2012 at 11:26am

राज कुमार सर , आपका बहुत बहुत धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on July 20, 2012 at 11:10am

संदीप भाई, सहयोग बना रहे मित्र ! हमेशा कुछ न कुछ बेहतर होता रहेगा ! :-)) :-))

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