वो अगर मुझसे खफा है
हक है उसको क्या बुरा है
घोंसले के साथ जुडकर
एक तिनका जी रहा है
जो अपरिचित है नदी से
बाढ़ पर वो बोलता है
है यकीं चारागरी पर
हो जहर तो भी दवा है
देख कर मुँह फेर लेना
कुछ पुराना आशना है
टूट ही जाना है उसको
सच दिखाता आइना है
जी रहा तुकबंदियों को
आदमी जो बेतुका है
..................... अरुन श्री !
Comment
राज सर , पसंदगी के लिए शुक्रिया !
अविनास सर , बहुत बहुत धन्यवाद !
घोंसले के साथ जुडकर
एक तिनका जी रहा है
बहुत अच्छे अरुन जी! छोटी बह्र की छूती गज़ल!
जी रहा तुकबंदियों को
आदमी जो बेतुका है....wah...
....जो अपरिचित है नदी से बाढ़ पर वो बोलता है....अरुन श्री .बहुत कमाल के शेर हैं .
वीनस सर , बस यूँ ही कृपा दृष्टि बनाए रखिए ! :-))) :-)))
भाई अरुण जी आपकी ग़ज़लों में उत्तरोत्तर कहन और शिल्प आधार पर कसाव बढ़ा है
मैं एक पाठक की हैसियत से संतुष्ट होता हूँ और मुझे क्या चाहिए
जब कभी कोई कमी देखूँगा तो जरूर कहूँगा
...............
एक बार का वाकया याद आ गया तो सुनाता चलूँ
मैं अपनी एक ताज़ा ग़ज़ल अपने शहर के एक उस्ताद शायर को सूना रहा था और सुनाने के बाद मैंने कुछ इस्लाह की गुजारिश की, मगर उन्होंने कहा कि "ग़ज़ल अच्छी है इस्लाह की जरूरत नहीं है"
मगर मैं जिद करने लगा तो उन्होंने एक वाक्य कहा था ---
"वीनस, भागते घोड़े को बेंत नहीं मारी जाती" ....
:))))))))))))))))))))))))))))))
बढ़िया ग़ज़ल सचमुच मज़ा आ गया.
बहुत सुंदर अरुण श्रीवास्तव जी ....
राज कुमार सर , आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
संदीप भाई, सहयोग बना रहे मित्र ! हमेशा कुछ न कुछ बेहतर होता रहेगा ! :-)) :-))
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