चाँद-सितारे ,बादल ,सूरज
आँख मिचौली खेल रहें हैं ।
धरती खुश है ,
झूम रही है ।
झूम रहा है प्रहरी कवि-मन ।
समय आ गया नए सृजन का ।
खून सनी सड़कों पर-
काँटे उग आएं हैं ।
जीवन भाग रहा है नंगेपांव –
मगर बचना मुश्किल है ।
सन्नाटों का गठबंधन-
अब चीखों से है ।
हृदयों के श्रृंगारिक पल में
छत पर चाँद उतर आता है ।
कवि के कन्धे पर सर रखकर
मुस्काता है ।
नीम द्वार का गा उठता है
गीत प्यार के ।
कविताएँ नाखून बढाकर
घूम रहीं हैं ।
नुचे हुए भावों के चेहरे
नया मुखौटा ओढ़ चुके हैं ।
अट्टहास करती है नफरत
प्यार भरी कुछ मुस्कानों पर ।
अलग-अलग से दो मंजर हैं ,
किसको देखूं ?
जुदा-जुदा सी दो राहें हैं ,
क्या होगा-
मेयार सफर का ?
तय करना है !
.............................. अरुन श्री !
Comment
डा० प्राची सिंह मैम , ऐसे ही दृष्टि बनाए रखिए ! सादर धन्यवाद !
विनीता शुक्ल मै , सराहना और बधाई सन्देश हेतु धन्यवाद आपका !
नादिर साहेब , सराहना के लिए धन्यवाद !
राजेश कुमारी मैम , बहुत बहुत धन्यवाद जो अपने इस रचना को समय दिया ! उम्मीद है अब नियमित रह सकूंगा ! :-)) ! अच्छा लगा कि मैं याद हूँ आपको !
आदरणीय सौरभ सर ,
//किसे समझें और किसे समझते हुए छोड़ दें का व्यावहारिक द्वंद्व. संवेदना को मिला यही श्राप किसी कवि के हो जाने की शर्त है//
आपकी सिर्फ एक पंक्ति इस पूरी कविता से अधिक सारगर्भित है ! आपने सदा ही मेरा मान बढ़ाया है ! आशीर्वाद दिया है ! मार्गदर्शन किया है ! इस सब बातों के लिए मैं धन्यवाद नही कहूँगा ! बस आशीष बना रहे अनुज पर ! :-))
संभवतः सब सामान्य रहा तो अब नियमित रहूँगा !
राजेश कुमार सर , आपकी सराहना ने सचमुच सुखद एहसास कराया ! आपने ठीक ही कहा ये न तो गीत है न ही नवगीत ! तो अतुकांत आधुनिक कविता कह लें ! :-)) शिल्प चाहे जो हो भाव ह्रदय तक पहुँचने चाहिए ! आपके सुझाव के लिए आपका आभारी हूँ ! बस ऐसे ही दृष्टि बनाए रखिए ! सादर धन्यवाद !
अखिलेश मिश्र सर , बहुत बहुत धन्यवाद !
रविकर सर , आपकी छंदबद्ध सराहना के लिए धन्यवाद !
दो बिलकुल अलग भाव चित्रों को बहद संवेदनात्मक शब्दों के साथ अभिव्यक्त किया है आ. अरुण जी.....बहुत रोचक और सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई
अद्भुत एवं प्रभावी अभिव्यक्ति. बधाई स्वीकार करें.
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