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तीन कह-मुकरियाँ

(एक अभिनव प्रयोग)

 

खुसरो की बेटी कहलाये

भारतेंदु संग रास रचाये

कविजन सारे जिसके प्रहरी

क्या वह कविता? नहिं कह-मुकरी!

 

बांच जिसे जियरा हरषाये

सोलह मात्रा छंद सुहाये

पुलकित नयना बरसे बदरी

क्या चौपाई ? नहिं कह-मुकरी!

 

चैन चुराये दिल को भाये 

चिर-आनंदित जो कर जाये

मन की कहती फिर भी मुकरी!

क्या वह सजनी? नहिं कह-मुकरी!

--अम्बरीष श्रीवास्तव

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Comment

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 21, 2012 at 11:05pm

स्वागतम आदरणीय अविनाश जी, आपका स्नेह पाकर यह सृजन सार्थक हो गया है , अतः आपके प्रति हार्दिक आभार ज्ञापित कर रहा हूँ .....सादर 

Comment by AVINASH S BAGDE on July 21, 2012 at 6:47pm

बांच जिसे जियरा हरषाये सोलह मात्रा छंद सुहाये पुलकित नयना बरसे बदरी क्या चौपाई ? नहिं कह-मुकरी!

अंबरीश भाई , कह-मुकरी के माध्यम से ही मुकरी को परिभाषित कर देना , मुकरी की विशेषता बता देना .....क्या कमाल है...

आभार...

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 21, 2012 at 8:49am

नमस्कार भाई डॉ० सूर्या बाली जी ! आपके द्वारा की गयी सराहना से कुछ और भी नया करने का उत्साह जगा है ! इस हेतु आपके प्रति हार्दिक आभार ज्ञापित कर रहा हूँ | यदि इन कहमुकरियों से किसी का लेशमात्र भी भला हो सका तो यह सृजन सार्थक होगा.....सादर 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 21, 2012 at 8:41am

गज़ब ग ज़ ब ग  ज़  ब............. के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय अलबेला जी :-)

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 20, 2012 at 11:47pm

अंबरीश भाई सादर नमस्कार ! कह-मुकरी के माध्यम से ही मुकरी को परिभाषित कर देना , मुकरी की विशेषता बता देना .....क्या कमाल है। जितनी भी तारीफ की जाये उतनी ही कम है...आपने तो शिल्प के भीतर शिल्प वाली बात चरितार्थ कर दी। बहुत उम्दा रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें !!

Comment by Albela Khatri on July 20, 2012 at 11:23pm

GAZAB

G A Z A B

G  A  Z  A  B

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 20, 2012 at 1:28am

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय उमाशंकर जी ! कह -मुकरी के प्रणेता जनाब अमीर खुसरो व भारतेंदु हरिश्चंद को कोटि कोटि नमन है ...सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 20, 2012 at 1:26am

मित्र संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' जी, कह-मुकरियों की तारीफ़ के लिए आपका दिली शुक्रिया .....

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 20, 2012 at 1:12am

प्रिय अरुण जी, सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ! इन कह-मुकरियों को पोस्ट करने से पूर्व ही मैंने  "तीन कह-मुकरियाँ (एक अभिनव प्रयोग)"  लिख दिया है ताकि इस पर कोई भी अनावश्यक विवाद की स्थिति न बनने पाए .......

बंधुवर! यह एक नयी शुरुआत भर नहीं है क्योंकि प्रतिष्ठित कवि यमुना प्रसाद प्रीतम ऐसी कह मुकरियाँ पहले ही रच चुके हैं ...उनके द्वारा रचित छः पंक्तियों वाली निम्नलिखित कह मुकरी देखिये ....

सत जोजन ते गंध ये पावें
बाँध कतार चले फिर आवें
चिपट-चौँट कें फिर ये खावें
तजें न भेली, मर भलि जावें
दल अपने तें अदल जमेता
का सखि "चेंटा'? ना सखि नेता!!

 

इनके दाँत बड़े है पैने
कुतर कुरेद सभी कछु जैने
भरे भौन रीते कर दैने
इन करतब अब कब लौं कैने [कहने]
बुधि-पति वाहन बिल गृह सेता
का सखि 'मूषक'? ना सखि नेता!!


दबे पाम ते पैलें आमें
ताक झाँक फिर वहाँ लगामें
हाँडी खोलि कें माल उडामें
मिलै न जो कहुँ तौ ढुरकामें
म्याँऊ-म्याँऊ के सुर देता
का सखि - 'बिल्ला'? ना सखि नेता!!

 

-- यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'

जन्म- ११ मई १९३१, मथुरा,.... 'राष्ट्र हित शतक' एवम् 'पंकज दूत' रचयिता

(साभार :- अनुभूति) 

शब्दकोष में मुकरी की परिभाषा निम्नवत है .....

मुकरी , की परिभाषा मुकरी , का अर्थ मुकरी - मुकरीसंज्ञा स्त्री० [हिं० मुकरना+ (प्रत्य०)] एक प्रकार की कविता । तह मुकरी । वह कविता जिसमें प्रारंभिक चरणों में कही हुई बात से मुकरकर उसके अंत में भिन्न अभिप्राय व्यक्त किया जाय । उ०— (क) वा बिन मोको चैन न आवे । वह मेरी तिस आन बुझावे । है वर सब गुन बारह बानी । ऐ सखि साजन ? ना सथि पानी । (ख) आप हिले औ मोहिं हिलावे । वाका हिलना मोको भावे । हिल हिल के वह हुआ निसंखा । ऐ सखि साजन ? ना सखि पंखा । (ग) रात समय मेरे घर आवे । भोर भए वह घर उठ जावे । यह अचरज है सब से न्यारा । ऐ सखि साजन ? ना सखि तारा । (घ) सारि रैन वह मो सँग जागा । भोर भोई तव बिछुड़न लागा । बाके बिछुड़त फाटे हिया । ऐ सखि साजन ? ना सखि दिया । विशेष— यह कविता प्रायः चार चरणों की होती है इसके पहले तीन चरण ऐसे होते हैं; जिनका आशय दो जगह घट सकता है । इनसे प्रत्यक्ष रूप से जिस पदार्थ का आशय निकलता है, चौथे चरण में किसी और पदार्थ का नाम लेकर, उससे इनकार कर दिया जाता है । इस प्रकार मानों कही हुई बात से मुकरते हुए कुछ और ही अभिप्राय प्रकट किया जाता है । अंमीर खुसरो ने इस प्रकार की वहुत सी मुकरियाँ कही हैं । इसके अंत में प्रायः 'सखी' या 'सखिया' भी कहते हैं ।

(साभार : डेफिनीशन ऑफ डॉटनेट)

अब भारतेंदु जी के ही कुछ उदाहरण और देखिये .....

‘भीतर भीतर सब रस चूसै
बाहर से तन मन धन मूसै
जाहिर बातन में अति तेज
क्यों सखि साजन? नहीं अंगरेज।’   --भारतेंदु हरिश्चंद्र, साभार  : dainiktribuneonline……

 

सीटी देकर पास बुलावै ।

रुपया ले तो निकट बिठावै । 

ले भागै मोहिं खेलहिं खेल ।

क्यों सखि सज्जन नहिं सखि रेल ।--भारतेंदु हरिश्चंद्र   साभार : कविताकोश

 (1)साभार : कविताकोश

(2)सन्दर्भ : भारतेंदु हरिश्चंद्र और हिन्दी नवजागरण की समस्याएं /पृष्ठ 70 द्वारा श्री राम बिलास शर्मा

इन दोनों कह मुकरियों में भारतेंदु जी ने 'साजन' व 'सज्जन' शब्द का अलग-अलग प्रयोग किया है | यदि साजन व सज्जन एक ही होते तो भारतेंदु जी ने इनका अलग-अलग अर्थों में प्रयोग क्यों किया ? साजन भला क्या रूपया लेकर निकट बिठाएगा? हाँ सज्जनों के क्लब में सदस्यता पाने के लिए फीस अवश्य भरनी पड़ती है  ...... इससे क्या यह स्पष्ट नहीं हो रहा कि सज्जन साजन से परे होकर अपने आप में एक अलग ही व्यक्तित्व है .....यहाँ पर इसे साजन के पर्याय में तो प्रयुक्त नहीं ही किया गया है |

 

क्या  इन प्रमाणों से  यह  सिद्ध नहीं हो रहा कि कह मुकरी मात्र 'साजन' पर ही नहीं रची जाती...... अपितु इसे किसी भी पदार्थ पर रच सकते हैं !

कुछ-एक विद्वानों का कथन है कि कहमुकरी सिर्फ 'साजन' पर ही रची जाती है ....यद्यपि कहमुकरी अधिकतर 'साजन' व 'सज्जन' पर ही रची गयी है फिर भी मुझे अभी तक इस बात का कोई भी लिखित प्रमाण नहीं मिल सका है कि कह मुकरी सिर्फ साजन और साजन पर ही रची जाती है ! यदि कोई ऐसा प्रमाण मिल सके तो हम सभी का ज्ञानवर्धन होगा !

वैसे भी समय के साथ-साथ भाव तो बदलते रहते हैं पर शिल्प नहीं! जैसे कि सड़क का निर्माण तो आज भी होता है पर क्या आज भी वह कंकर से ही निर्मित हो रही है ? आशा है कि आप संतुष्ट हो गए होंगे ! सस्नेह

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 19, 2012 at 11:27pm

प्रिय अनुज अम्बरीश आपको बहुत बहुत धन्यवाद आपने अति रोचक कहमुकरी छंद प्रस्तुत किया अमिर खुसरो एवं भारत्तेंदु हरिशचंद्र

की मुकरियाँ मन को भा गई आपका प्रयास सदा ज्ञान वर्धक रहता है आभार

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