For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिनके सर पर बाल नहीं है बाबाजी

सुर है लेकिन ताल नहीं है बाबाजी
पॉकेट  है पर माल नहीं है बाबाजी

क्योंकर कोई चूमे हमको सावन में
अपने चिकने गाल नहीं है बाबाजी

दर्पण से उनको नफ़रत हो जाती है
जिनके सर पर बाल नहीं है बाबाजी

मेहमानों की ख़ातिरदारी कैसे हो
घर में आटा दाल नहीं है बाबाजी

देश बेच कर खाने वाले लोगों का
लोहू शायद लाल नहीं है बाबाजी

उनकी ममता घुट घुट कर मर जाती है
जिनके अपने लाल नहीं है बाबाजी

मंहगाई के बिच्छू डंक चुभाते हैं
मोटी अपनी खाल नहीं है बाबाजी

हास्यकवि 'अलबेला' ऐसा घोड़ा है
जिसके खुर में नाल नहीं है बाबाजी

-अलबेला खत्री

Views: 965

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Albela Khatri on July 21, 2012 at 6:43pm

आपका हार्दिक हार्दिक आभार राजेश जी......
देर आयद.............
साभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 21, 2012 at 12:46pm

अरे अरे मै लेट हो गई पढने में पहले तो ग़ज़ल को हास्य रस  में लपेट  कर  जो समाज पर व्यंग्य का चांटा मारा है उसकी खूब तारीफ करने दो दूसरे तारीफ़ करनी पड़ेगी उन बारीकियों को ताड़ने वाली नजरों की ,वो कहते हैं न क्या क़यामत की नज़र रखते हैं ..आदि आदि एक अंक का बिंदु भी उनके एक्सरे में आ जाता है झट से |

Comment by Albela Khatri on July 21, 2012 at 10:01am

आदरणीय अम्बरीश जी,
बड़ी कृपा की आपने.........धन्यवाद

मैं इसे सुधार दूंगा  और भविष्य में भी ध्यान रखूँगा . हाँ, एक निवेदन करना चाहता हूँ  कि  मुझे ग़ज़ल की जानकारी न के बराबर है. मैं तो एक लय पकड़ लेता हूँ और उसी पर लिखता रहता हूँ . इस कारण  कभी कभी  मेरे ख़ुद के दोषपूर्ण उच्चारण  से भी  मामला मीटर के बाहर हो जाता है

__जब बह्र की जानकारी  प्राप्त कर लूँगा तब  ये कमी दूर हो जायेगी, लेकिन तब तक कृपया यों ही  ध्यान देते रहिएगा

______सादर

Comment by Albela Khatri on July 21, 2012 at 9:49am

:-)

Comment by Albela Khatri on July 21, 2012 at 9:48am

कितना अच्छा लगेगा
जब कर विभाग वाले कहेंगे
टिप्पणी कर !
और आप को  करनी ही पड़ेगी....हा हा हा

Comment by Albela Khatri on July 21, 2012 at 9:46am

सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 21, 2012 at 9:36am

//मेहमानों की ख़ातिरदारी कैसे हो
घर में आटा दाल नहीं है बाबाजी

मंहगाई के बिच्छू डंक चुभाते हैं
मोटी अपनी खाल नहीं है बाबाजी

हास्यकवि 'अलबेला' ऐसा घोड़ा है
जिसके खुर में नाल नहीं है बाबाजी
//

 

आदरणीय अलबेला जी, बहुत खूबसूरत गज़ल कही है आपने .....जीवन से सारे रंगों को समेटे हुए सभी अशआर एक से बढ़कर एक हैं ......इस निमित्त हमारी ओर से दिली बधाई स्वीकारें .....

निम्नलिखित मिसरे को पुनः देख लीजियेगा यह बेबह्र हो गया है |

२ /१  /२/१ / २   /२  /२  /२ /२  /२ /२   २

दे/श/ बे/च/ कर/ खा/ने/ वा/ले/ लो/गों/ का

सुझाव : बेच के स्थान पर 'लुटा', 'चबा' अथवा  जो भी आपको उपयुक्त लगे .....

उदाहरण

२ /२  /२    /२    /२  /२  /२ /२ /२ /२  /२

दे/श च/बा/ कर /खा/ने/ वा/ले/ लो/गों/ का

सादर

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 21, 2012 at 8:24am

...प्रभु लगता है टिपण्णी पर टेक्स लगवाओगे..... ये टैक्स लगाने वाली टेक्सी सरकार देख रही है हा हा हा

जय हो जय हो

Comment by वीनस केसरी on July 21, 2012 at 3:43am

सुर है लेकिन ताल नहीं है बाबाजी
पॉकेट  है पर माल नहीं है बाबाजी

क्योंकर कोई चूमे हमको सावन में
अपने चिकने गाल नहीं है बाबाजी

वाह वाह .....

Comment by Albela Khatri on July 21, 2012 at 12:06am

आप गलत बयानी कर रहे हैं जनाब !
ओ बी ओ में ऐसा  करना सख्त मना है ....भले ही लोग मानते नहीं,  जहाँ जहाँ जो जो करना मना होता है, वहीँ जा कर वो वो कर डालते हैं . आपके भी ढंग कुछ ऐसे ही दिख रहे हैं

__आप असत्य कहते हैं कि  आपने मुफ़्त में माल पचाया है  जबकि सच ये है कि आपने दो बार पेमेंट की है

__आपकी  दो दो टिप्पणियां किसी पेमेंट से कम है क्या .....हा हा हा हा हा हा
___कहो, कैसी रही.......
___सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
52 minutes ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
58 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
6 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
18 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
18 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
19 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
20 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
20 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service