सुर है लेकिन ताल नहीं है बाबाजी
पॉकेट है पर माल नहीं है बाबाजी
क्योंकर कोई चूमे हमको सावन में
अपने चिकने गाल नहीं है बाबाजी
दर्पण से उनको नफ़रत हो जाती है
जिनके सर पर बाल नहीं है बाबाजी
मेहमानों की ख़ातिरदारी कैसे हो
घर में आटा दाल नहीं है बाबाजी
देश बेच कर खाने वाले लोगों का
लोहू शायद लाल नहीं है बाबाजी
उनकी ममता घुट घुट कर मर जाती है
जिनके अपने लाल नहीं है बाबाजी
मंहगाई के बिच्छू डंक चुभाते हैं
मोटी अपनी खाल नहीं है बाबाजी
हास्यकवि 'अलबेला' ऐसा घोड़ा है
जिसके खुर में नाल नहीं है बाबाजी
-अलबेला खत्री
Comment
नहीं भाई साहब छप्पन व्यंजनों से सजी पूरी थाली .....है ये. आपका माल मुफ्त में ही पचायेंगे आप ठहरे मारवाड़ी हम ठहरे पुजारी | ....क्या है च्यावनप्राश को शाहरुख और गांगुली नामक बीमारी ने पोषकता हीन कर दिया है इसमें भी असली और नकली का चक्कर चल रहा है जिसने कहा असली ..समझो भैय्या नकली
हा हा हा
यानी मुफ़्त में च्यवनप्राश खा लिया आपने...हा हा हा
वाह अलबेला जी सारे पोषक तत्वों का मिश्रण.... मजा आ गया
उम्दा रचना पर वाहवाही प्रोत्साहन देती है परन्तु दोषपूर्ण रचना पर वाहवाही करना कत्तई उचित नहीं है महाप्रभु !
हाँ, किसी नवोदित लेखक को यदि सदोष रचना पर भी प्रोत्साहन मिले, तो कोई चिन्ता नहीं, परन्तु अपने आपको कवि/लेखक बताने अथवा समझने वालों की हर रचना पर बिना सोचे-समझे वाहवाही करना एक तरह से साहित्यिक अपराध ही है . सच्चा मित्र वो है जो भूलों की तरफ़ ध्यान दिलाये, वाह वाह करने वाले तो बहुत मिल जाते हैं, सुधार करने वाला कोई बिरला ही होता है
धन्य हो गुरू ! मैं आपके अंदाज़ का कायल हूँ और सच्चे मन से आपका आदर इसीलिए करता हूँ कि आप त्रुटियों की ओर संकेत करते हैं
___सादर
फिर ग़लत. भाईजी, हम वहाँ कत्तई नहीं हैं जहाँ मुझे आपने समझ लिया है.
मैं जितना जो जानता हूँ -- जितना ही सही--- सभी से साझा कर लेता हूँ. वर्ना साहब, ’बहुत खूब’, ’वाह-वाह’ आदि-आदि-आदि करते रहने में मेरा भी क्या जाता है ?!! ... :-)))))))
जो सही है उसकी तो सभी बड़ाई करते हैं. ओबीओ मंच के लिहाज़ से अन्यों से अलग मात्र इसलिये है कि जो सही नहीं है उसकी ओर इंगित करने की ताक़त देता है. विनम्र ताक़त.
सादर ...
जी महाप्रभु
आपकी आज्ञा का पालन होगा
सादर
__________देश का नेता कैसा हो
__________महाप्रभु के जैसा हो !
भाई जी, ये अपन को डंडा किसने थमाया ? .. और फिर हमने कान तो कभी पकड़ा ही नहीं, बस देख लिया. अब आप खुद ब खुद मुर्गा बने बैठे हैं तो हम ’का’ करें.. . भाईजी, छड़िये ये कान-वान और थाम लीजिये कलम.. . आगे दुरुस्त करना है न !! .. :-))))))
सादर
सम्मान्य अरुण श्रीवास्तव जी
धन्य कर दिया
आपने तो कमाल ही कर दिया
___इस विस्तृत टिप्पणी के लिए आभारी हूँ
सादर
आपकी कद्रदानी का भी कोई जवाब नहीं सीमा जी
धन्यवाद
सादर
सुर है लेकिन ताल नहीं है बाबाजी
पॉकेट है पर माल नहीं है बाबाजी .............. अक्सर कवियों की हालत ऐसी ही होती है ! :-))
क्योंकर कोई चूमे हमको सावन में
अपने चिकने गाल नहीं है बाबाजी ............ इतने लीपा पोती के सामान उपलब्ध है ! फायदा उठाइए ! लेकिन बारिस में मत भिगिएगा ! :-))
दर्पण से उनको नफ़रत हो जाती है
जिनके सर पर बाल नहीं है बाबाजी ................ बहुत ही मार्मिक बात कह दी अपने तो ! :-))
मेहमानों की ख़ातिरदारी कैसे हो
घर में आटा दाल नहीं है बाबाजी
देश बेच कर खाने वाले लोगों का
लोहू शायद लाल नहीं है बाबाजी ............. सच लिखा और कड़वा भी !
उनकी ममता घुट घुट कर मर जाती है
जिनके अपने लाल नहीं है बाबाजी ............. पूरी गज़ल का माहौल बदल दिया इस शे'र ने ! बहुत ही बढ़िया !
मंहगाई के बिच्छू डंक चुभाते हैं
मोटी अपनी खाल नहीं है बाबाजी ................. और बहुत कोशिशों के बाद भी जहर काटने की दवा नही बन पा रही है !
हास्यकवि 'अलबेला' ऐसा घोड़ा है
जिसके खुर में नाल नहीं है बाबाजी ........... बिना नाल के तो ये रफ़्तार है ! नाल लग जाए तो क्या होगा ! :-)) :-))
बाकी सौरभ सर की बात अनुकरणीय है !
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