For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो कोमल थे, वो कंटीले थे,

आँखें सूखीं थी, हम गीले थे,

रास्ते फूलों के, पथरीले थे,

जख्मी पग, कांटें जहरीले थे,

ढहे पेंड़ों से, पत्ते ढीले थे,

बिखरे हम, कर उसके पीले थे,

नाजुक लब, नयना शर्मीले थे,

घर में बदबू थी, हम सीले थे,

हम फीके भी ,हम चमकीले थे..........

Views: 382

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 25, 2012 at 1:38pm

स्वागत है अनुज .....सस्नेह

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 25, 2012 at 12:17pm

आशीष जी शुक्रिया .

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 25, 2012 at 12:17pm

भ्राताश्री अम्बरीश जी बस इसी तरह से मार्ग दर्शन करते रहिये, एक दिन अवश्य सीख जाऊँगा. बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 25, 2012 at 12:16pm

अलबेला जी सराहना के लिए आभार.

Comment by Ashish Srivastava on July 23, 2012 at 9:52pm

Arun sharma ji is sundar rachna ke liye badhai ..... 

ambarish ji aapke is commnet se mujhe kafi kuch samjh aaya hai , aur mai ise sudhar bhi karunga 

dhnaywaad

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 23, 2012 at 8:27am

अरुण शर्मा ‘अनंत’ जी, सुंदर रचना रचने का बेहतर प्रयास किया है आपने…. हार्दिक बधाई मित्र...

फिर भी मैं आपको ध्यान दिलाना चाहूँगा कि गेय रचना की गेयता/प्रवाह  टूटना नहीं चाहिए 

तथा निर्धारित की गयी मात्रायें समान होनी चाहिए........उदाहरण के लिए आप अपनी पहली व दूसरी पंक्ति को देखिये ...

२   २११  २  १  १ २ २ = १५

//वो कोमल थे, वो कंटीले थे,

२२   २२   २ ११  २२  २ =१८

आँखें सूखीं थी, हम गीले थे,//

{मात्रा गणना हमेशा उच्चारण के अनुसार ही की जाती है ....इसीलिए यहाँ पर  ‘वो कंटीले (कँटीले) में ‘वो’ व ‘कं’ को गिरा कर अर्थात लघु रूप में पढ़ा जायेगा}

सुझाव के रूप में निम्नलिखित उदाहरण को देखिये ......  

२  २ ११  २१  १२२  २=१६

वो कोमल और कँटीले थे,

२२   २२   ११  २२  २=१६

आँखें सूखीं, हम गीले थे,

११  २२  २  ११२२  २=१६ 

पथ फूलों के, पथरीले थे,

११  २११  २  ११२२  २=१६

पग कंटक तो जहरीले थे,

२२  २  २२  २२  २=१६

पेंड़ों से  पत्ते ढीले थे,

११२   ११  ११ २  २२  २=१६

बिखरे हम, ‘कर’ वो पीले थे,

२११   ११२   २२२  २=१६

नाजुक नयना शर्मीले थे,

११ २  ११२  २  २२  २=१६

घर में बदबू जो ‘सीले’ थे,

११  २२  २  ११२२   २=१६

अब फीके हैं, चमकीले थे..

सस्नेह

Comment by Albela Khatri on July 22, 2012 at 11:11pm

वाह वाह अच्छा प्रयास अरुण शर्मा जी

रास्ते फूलों के, पथरीले थे,

जख्मी पग, कांटें जहरीले थे,

__बधाई !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
9 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service