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आठ कह-मुकरियां

दांत भींच कर उसे दबाऊं
फिर भी उसको रोक न पाऊं
निकले बाहर लगती फाँसी
क्या सखि खाँसी? नहिं रे हाँसी

कदम-कदम पर उसका  पहरा
आँख का अंधा कान का बहरा
चरण चांपता रहे निपूता
क्या सखि नेता? नहिं सखि जूता

बड़े बड़े फन्ने खां आये
लेकिन उसको हिला न पाए
उलटे कब्र स्वयं की खोदी
क्या सखि राहुल? नहिं सखि मोदी

सारा जग जिसका दीवाना
सब गाते हैं उसका गाना
ऐसा वैसा जैसा तैसा
क्या सखि सावन? नहिं सखि पैसा

जाड़े का जब मौसम आये
नख-शिख तक मेरे छा जाये
सुखद लगे वह तन लिपटाई
क्या सखि साजन? नहीं रजाई

जब-जब आये प्यास बुझाए
तन-मन में आनन्द जगाये
प्यासी देह खिले मस्तानी
क्या सखि साजन? नहिं सखि पानी

नहिं वह काला, नहिं वह गोरा
लोहे जैसा लगे कठोरा
समय का अपने वह सरदार
क्या सखि साजन? नहीं कलदार

जब-भी उसका सुर चढ़ जाये
अंग अंग सारा दुःख जाए
तोड़ हमेशा देता यार
क्या सखि साजन? नहिं रे बुखार

-अलबेला खत्री


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Comment by Albela Khatri on July 22, 2012 at 10:46pm




सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2012 at 10:45pm

सादर भाईजी.

Comment by Albela Khatri on July 22, 2012 at 10:43pm

आप श्री ने पसन्द कर लिया........
मानो पद्मश्री मिल गया
जय हो
___आपकी अनुकम्पा सीधे मन में उतरती है भगवन !

___सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2012 at 10:39pm

वाह ! बहुत सुन्दर प्रयास आपका भाई जी. हृदय की गहराइयों से बधाई कह रहा हूँ.

तीसरा बंद तो बस मोह गया, भाईजी.  विशेष बधाई !

जय होऽऽऽ

Comment by Albela Khatri on July 22, 2012 at 9:35pm

धन्यवाद भाईजी..........
आपको पसन्द आई, मेरी मेहनत सफल हुई...
जय हो आपकी
___सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 22, 2012 at 9:25pm

 वाह वाह अलबेलाजी, बचपन में एक दूसरे को पहेली बूझ-कहते थे बताओ उत्तर, साहित्यकार अब इसे कह-मुकरिया के रूप में सखी से पूछ कर उसे न-सखी कहकर अपनी पहेली का उत्तर अपनी जबानी देते है, और सखी को धेला बता देतेहै | भाई अलबेला - बहुत बढ़िया, आपने तो पहली मुकरिया में ही खांसी की हांसी करदी, फिर मोदी विरोधियों की ऐसी तैसी से लेकर कलदार तक मस्त कलंदर कर दिया, धन्यवाद | -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर 

Comment by Albela Khatri on July 22, 2012 at 8:16pm

धन्यवाद  राजेश कुमारी जी

Comment by Albela Khatri on July 22, 2012 at 8:15pm

धन्यवाद दीप्ति जी........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 22, 2012 at 8:04pm

वाह वाह अलबेला जी विधा पुरानी नई कहानी बहुत खूब सभी मुकरियाँ एक से बढ़कर एक हैं बधाई आपको 

Comment by deepti sharma on July 22, 2012 at 7:53pm

वाह अलबेला जी बहुत खूब

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