मदन-छंद या रूपमाला
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है मदन यह छंद इसका, रूपमाला नाम.
पंक्ति प्रति चौबीस मात्रा, गेयता अभिराम.
यति चतुर्दश पंक्ति में हो, शेष दस ही शेष,
अंत गुरु-लघु या पताका, रस रहे अवशेष..
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चाँदनी का चित्त चंचल, चन्द्रमा चितचोर.
मुग्ध नयनों से निहारे, मन मुदित मनमोर.
ताकता संसार सारा, देख मन में खोट.
पास सावन की घटायें, चल छिपें उस ओट..
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था कुपित कुंदन दिवाकर, जल रहा संसार .
विवश वसुधा छेड़ बैठी, राग मेघ-मल्हार.
मस्त अम्बर मुग्ध धरती, मीत से मनुहार.
घन-घनन घनघोर घुमड़े, तृप्ति दे रसधार..
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--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
वाह वाह आदरणीय अम्बरीश जी........
बहुत सुन्दर छन्द बताया .......मज़ा आया
___आपसे क्षमा चाहते हुए एक प्रयास किया है
____आप ही को समर्पित है :
है मदन यह छंद इसका, रूपमाला नाम.
पंक्ति प्रति चौबीस मात्रा, गेयता अभिराम.
यति चतुर्दश पंक्ति में हो, शेष दस ही शेष,
अंत गुरु-लघु या पताका, रस रहे अवशेष..
शेष अब कुछ भी नहीं है, भर दिया सब ज्ञान
किस तरह का छन्द है ये, हम गये हैं जान
रस भरा यह छन्द न्यारा, भा गया श्रीमान
रच सके यदि हम तो बन्धु , आपका एहसान
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चाँदनी का चित्त चंचल, चन्द्रमा चितचोर.
मुग्ध नयनों से निहारे, मन मुदित मनमोर.
ताकता संसार सारा, देख मन में खोट.
पास सावन की घटायें, चल छिपें उस ओट..
ओट में क्या लाभ होगा, कुछ दिखेगा नाय
पास बैठो दो घड़ी तो, तन बदन खिल जाय
मुग्ध हों तो लोग हों जी, हम न होंगे यार
हम परिन्दे प्यार के हैं, बस करेंगे प्यार
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था कुपित कुंदन दिवाकर, जल रहा संसार .
विवश वसुधा छेड़ बैठी, राग मेघ-मल्हार.
मस्त अम्बर मुग्ध धरती, मीत से मनुहार.
घन-घनन घनघोर घुमड़े, तृप्ति दे रसधार..
धार अविरल बह रही है, पी रहे हैं लोग
मिलनरस जब हो मयस्सर, कौन लेगा जोग
यामिनी का रंग पिय को, कर रहा रंगीन
अंक में भी तन तड़पता, है गज़ब यह सीन
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___सादर
रूपमाला पंक्तियों से, दे रही है थाप
थाप से हैं तथ्य उभरे, जान लें हम-आप
गिन सकें ग़र वज़्न इनका, चौंक जायें लोग
पंक्तियों में बह्र सा है, देख लें कर योग.. .
रोचक तथ्य है या नहीं, आदरणीय अम्बरीष भाईजी !.. है न ? .. :-))
भ्रात संजय नेह आशिष, ढेर सारा प्यार.
रूप माला से सराहा, हे अनुज आभार.
आपकी प्रतिभा अनोखी, क्या गज़ब के छंद.
श्रावणी रस धार बरसी, आ गया आनंद ..
धन्यवाद आदरेया राजेश कुमारी जी ! आपने इन छंदों को सराह कर जो उत्साहवर्धन किया है उसके लिए आपके प्रति हार्दिक आभार ज्ञापित कर रहा हूँ !
श्रावणी शीतल पवन ज्यों, आपके ये छंद।
भीजता रस-धार में मन, पा अति आनंद।
क्या फुहारें पड़ रही हैं, धुल गए सब धूल।
खुशबुओं संग मुस्कुराते, ज्यों महकते फूल।
दे अनुज हर्षित बधाई, हाँ! झुकाये माथ।
मोहते उर छन्द सारे, हो हमेशा साथ।
नित्य अतुलित सार सागर, की रहे ले थाह।
सीखते विद्यारथी सब, मन भरे उत्साह।
खुबसूरत रूपमाला छंदों के लिए सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय अम्बर भईया....
वाह वाह जैसे बहार आ गई हो उपवन में इन अनुपम छंदों के लिए हार्दिक बधाई
स्वागतम ओ भ्रात मेरे,जो दिया है प्यार.
आपने रचना सराही, आपका आभार..
ताकता संसार सारा, देख मन में खोट.
पास सावन की घटायें, चल छिपें उस ओट..
वाह भ्राताश्री क्या बात है, जैसे इन पंक्तियों को पढ़ कर आभास हुआ की सचमुच में सावन की घटा छा गयी है चारों ओर. अदभुत रचना बधाई स्वीकार करें.
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