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घास कहीं भी उग आती है
जहाँ भी उसे काम चलाऊ पोषक तत्व मिल जाँय,
इसीलिए उसे बेशर्म कहा जाता है,
इतनी बेइज्जती की जाती है;

घास का कसूर ये है
कि उसे जानवरों को खिलाया जाता है
इसीलिए उसकी बेइज्जती करने के लिए
मुहावरे तक बना दिये गए हैं
कोई निकम्मा हो तो उसे कहते हैं
वो घास छील रहा है;

जिस दिन घास असहयोग आन्दोलन करेगी
उगना बन्द कर देगी
और लोगों को अपने हिस्से का खाना
जानवरों को देना पड़ेगा
अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए;
उस दिन पता चलेगा सबको घास का महत्व
उसी दिन बदलेगी लोगों की सोच
और सदियों से चले आ रहे मुहावरे।

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Comment by आशीष यादव on October 8, 2010 at 2:27pm
Waah, gazab ka chunaw h. Sach kaha gya h jaha na pahuche Ravi waha pahuche kavi.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 8, 2010 at 9:50am
वाह वाह धर्मेन्द्र जी, बहुत खूब, दुनिया मे प्रत्येक चीज का महत्व है, बस उसको समझने वाला चाहिये, घास को प्रतिक बना बहुत ही संदेशपरक रचना दिया है, बधाई आपको इस खुबसूरत कृति पर, आगे भी आप की रचनाओं का तथा अन्य रचनाओं पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणियों का इन्तजार रहेगा |

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