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राह तकती है तुम्हारी,
आज यह सूनी कलाई....

स्मृति बस स्मृति ही ,
शेष है सूने नयन में
बिम्ब दिखता है तुम्हारा,
आज मधु मंजुल सुमन में
यूँ लगा कि द्वार खुलते
ही मुझे दोगी दिखाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई.........................

आरती की थाल कर में
दीप आशा का जलाये
इस धरा पर कौन है जो
नेह की सरिता लुटाये
श्रावणी वर्षा हृदय में
आज मेरे है समाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई.........................

रेशमी धागों की अब भी
इस कलाई पर छुअन है
हो रहा अहसास कि
नजदीक ही मेरी बहन है
वह प्रतीक्षा कर रही है
हाथ में थामे मिठाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई........................

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2012 at 2:28pm

भाई अरुण जी, प्रस्तुत अति उन्नत भावाभिव्यक्ति के प्रति मेरा सादर नमन.

मैं आपकी भावनाओं को हृदय की गहराइयों से महसूस कर रहा हूँ. आप मेरी भी भावनाओं से सादर भिज्ञ हों -

आकुल मन नम आँख से, बहना आती याद ।
उस घर है वो जा बसी, जहाँ न हर्ष-विषाद ॥

जबसे बहना जा बसी जहाँ बसे घनश्याम |
राखी बिना कलाइयाँ तबसे उसके नाम ||

मेरे मन की मान थी, मन की ईश सुनाम |
मन से मन को तारती, बहना याद तमाम ||

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