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अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये......

 

कैसे – कैसे मंजर आये प्राणप्रिये
अपने सारे हुये पराये प्राणप्रिये |


सच्चे की किस्मत में तम ही आया है
अब तो झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |


ज्ञान भरे घट जाने कितने दफ्न हुये
अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |


भूखे - प्यासे हंसों ने दम तोड़ दिया
अब कौआ ही मोती खाये प्राणप्रिये |


यहाँ राग - दीपक की बातें करता था
वहाँ राग – दरबारी गाये प्राणप्रिये |


सोने – चाँदी की मुद्रायें लुप्त हुईं
खोटे सिक्के चलन में आये प्राणप्रिये |


सच्चाई के पाँव पड़ी हैं जंजीरें
अब तो बस भगवान बचाये प्राणप्रिये |


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on August 8, 2012 at 11:46am

आदरणीय अरुन जी क्या बात है बेहद खुबसूरत बधाई स्वीकार कीजिये.....

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 6, 2012 at 11:06am

आदरणीय अरुण जी,

सुन्दर अश'आर के फूलों से सजा आपका यह ग़ज़ल रुपी गुलदस्ता बड़ा ही मनभावन है! सहज सरल शब्दों में एक से बढ़ कर एक गूढ़ बातें कह गए आप! ख़ास तौर से तीसरा शे'र -- अधजल गगरी छलकत जाए... और पांचवां -- यहाँ राग दीपक की बातें करता था.. वाह आपने समां बाँध दिया! आपको और आपकी लेखनी दोनों को ही नमन है! सादर,

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 6, 2012 at 9:45am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय सर जी वाह वाह वाह
सादर दाद क़ुबूल कीजिये
हिंदी में ग़ज़ल के प्रचलन को इससे और मजबूती मिलेगी
क्या बात कही है आपने वाह वाह वाह

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 6, 2012 at 8:03am

आदरणीय अरुण जी

                       सादर,आज के चलन को बखूबी बयान किया है आपने

ज्ञान भरे घट जाने कितने दफ्न हुये
अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |

सोने – चाँदी की मुद्रायें लुप्त हुईं
खोटे सिक्के चलन में आये प्राणप्रिये |

खोटे खरे सिक्कों कि बात तो बैंक वाले ही बेहतर जान सकते हैं.

हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

 

 

Comment by वीनस केसरी on August 6, 2012 at 1:27am

अरुण जी आपकी इस ग़ज़ल ने मुग्ध कर दिया
आपने जिस खूबसूरती से, सादा शब्दों में सामाजिक विषमताओं को अशआर में ढाला है उसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है

लगता है ओ बि ओ पर बेहतरीन ग़ज़लों की वर्षा हो रही है

मन प्रसन्न है
जय हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 6, 2012 at 12:20am

शुक्रिया डॉक्टर साहब, आपने इसे पसंद किया, बस मेरी कलम धन्य हो गई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 6, 2012 at 12:18am

आभार माननीय अलबेला जी, आपकी वाह से हौसले बुलंद हुये.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 6, 2012 at 12:17am

वाह उमाशंकर जी, आपने तो हर पंक्ति पर अपने अमूल्य विचार प्रस्तुत करके कृतार्थ कर दिया.

मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on August 5, 2012 at 10:56pm

अरुण भाई बहुत ही उम्दा ग़ज़ल से नवाजा है इस मंच को आपने। ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में एक ग़ज़ल है.....मतले से मकते तक बखूबी निभाई है आपने। खासकर ये शेर तो दिल को छू गया...

सच्चे की किस्मत में तम ही आया है
अब तो झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |

आपको बहुत बहुत मुबारकबाद!

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 5, 2012 at 10:47pm

भूखे - प्यासे हंसों ने दम तोड़ दिया
अब कौआ ही मोती खाये प्राणप्रिये |

sundar panktiyan......vyang se paripurn.......

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