कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥
तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥
भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,
मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥
क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,
सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥
कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,
कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥
यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,
मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥
हँसी होठों पे रखता है हजारों ज़ख्म खाकर भी,
मगर अंदर ही अंदर से दिवाना टूट जाता है॥
हो “सूरज” हौसला दिल में तो मंज़िल मिल ही जाएगी,
जो मौजें सर पटकती हैं किनारा टूट जाता है॥
Comment
कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥
तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥
मतले ने देर तक अपने पास रोके रखा ...
सभी शेर बढ़िया हुए हैं मगर मतले का कोई जवाब नहीं
वाह वा ... क्या कहने
बधाई
कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥
तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥दिल से दिल के रिश्तों का टूटना और सदियों के भरोसे का टूटना क्या बात है सूर्या बाली जी वाह वाह ...लुट लिया आपने
भले जुड़ जाये समझौते से पहले सा नहीं रहता,
मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है॥इस लाईन ने तो रहीम के दोहों की याद तरो ताजा कर दी.. पर आपका अंदाज भी काबिले तारीफ है
क़ज़ा की आंधियों के सामने टिकता नहीं कोई,
सिकंदर हो कलंदर हो या दारा टूट जाता है॥अजीज नाजा की कव्वाली की एक लाईन थी
था सिकंदर के हौसले जो आली थे –जब गया था दुनिया से दोनों हाथ खाली थे आपने जो जिक्र किया है कज़ा की आंधियों के सामने अद्भुत है बहुत सुन्दर
कभी हिम्मत नहीं हारा जो मीलों मील उड़कर भी,
कफ़स में क़ैद होकर वह परिंदा टूट जाता है॥ शेर में गहराई है उम्दा ..
यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,
मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥यहाँ तो एक दम से भावुक कर दिया ...बहेतरीन
हँसी होठों पे रखता है हजारों ज़ख्म खाकर भी,
मगर अंदर ही अंदर से दिवाना टूट जाता है॥ दर्द का सागर उड़ेल दिया है आपने
हो “सूरज” हौसला दिल में तो मंज़िल मिल ही जाएगी,
जो मौजें सर पटकती हैं किनारा टूट जाता है
गज़ल की हर लाईन दमदार है आदरणीय सूर्या बाली जी आपकी इस गज़ल ने तो लुट लिया है आपसे गुजारिश है की आप ब्लॉग में कभी कभी ही दीखते है आपकी इतनी सुन्दर रचना के लिए हर कोई का दिल व्याकुल हो सकता है आपसे निवेदन है की हमें अपनी लाजवाब गज़लों से तरबतर कर दो हम आपके आभारी रहेंगे
कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥
तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥
आदरणीय सूरज जी ...बिलकुल सटीक और सत्य को दर्शाती सुन्दर गजल ....एक से बढ़कर एक ....
यूं चलना चाहते तो है सभी राहे सदाक़त पर,
मगर भूंखे हो बच्चे तो इरादा टूट जाता है॥
हो “सूरज” हौसला दिल में तो मंज़िल मिल ही जाएगी,
जो मौजें सर पटकती हैं किनारा टूट जाता है॥
आदरणीय सूरज जी , हिम्मत बढ़ी. आभार
कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है॥
तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है॥.....bahut umda panktiyan...Aadarniya sooraj ji....alfaaj nahi hai ....
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