For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उसके आने की डगर अब देखता रहता हूँ मैं

उसके आने की डगर अब देखता रहता हूँ मैं।

लेके टूटे  ख़ाब शब भर जागता रहता हूँ मैं॥

 

रोज़ बनकर चाँद आँगन में मेरे आता है वो,

रोज़ उसकी चाँदनी में भीगता रहता हूँ मैं॥

 

इक अजब सी तिष्नगी है जो कभी बुझती नहीं,

किस नदी की जुस्तजू में घूमता रहता हूँ मैं?

 

कह रहे हैं लोग मैं पागल हूँ उसके इश्क़ में,

बेख़ुदी में नाम उसका बोलता रहता हूँ मैं॥

 

जानता हूँ ख़ाब उसके तोड़ देंगे नींद को,

फिर भी सोने का बहाना ढूँढता रहता हूँ मै॥

 

आईने में अक्स मेरा रहता उतनी देर तक,

ख़ुद को जितनी देर उसमें ताकता रहता हूँ मैं॥

 

छोडकर सूरज सितारे चाँद, बच्चों की तरह,

जुगनुओं के आगे पीछे भागता रहता हूँ मैं॥

 

मौज़ पर बहते हुए पत्ते का है अंजाम क्या?  

बैठकर दरिया किनारे सोचता रहता हूँ मैं॥

 

कौन हूँ, क्या हूँ, कहाँ हूँ जी रहा हूँ किसलिए,

ख़ुद से “सूरज” आजकल यह पूछता रहता हूँ मैं॥

 

                  डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

 

Views: 504

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 17, 2012 at 3:17pm

मुसाफिर जाएगा कहाँ 

बधाई सर जी 

Comment by yogesh shivhare on August 24, 2012 at 1:56am

बहुत ही सुन्दर है ...हर शेर मुकम्मल .और गहरे भाव समेटे हुए निसब्द हु तारीफ़ के लिए शब्द  नहीं है .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2012 at 8:36am

डॉक्टर साहब, क्या कहूँ ! इस ग़ज़ल पर मेरी हृदय से बधाई लीजिये.

ग़ज़ल ठीक-ठाक बीट पर ही शुरू होती है. शुरू के हर शेर के बाद मन बेसाख़्ता वाह-वाह करता है. कि, आखिरी के तीन अश’आर अचानक से चकित कर देते हैं. ग़ज़ब के भाव और उतनी ही ज़बर्दस्त कहन के साथ.. . अद्भुत !

हृदय से बधाई.

Comment by वीनस केसरी on August 14, 2012 at 1:29am

बेहतरीन अशआर हो गए भाई
इस ग़ज़ल में आपके शेर रवानगी से भरपूर हैं कहीं कोई अटकाव नहीं है कोई शब्द अटकाव पैदा नहीं कर रहा है
कुछ शेर तो बहुत कुछ सोचने को मजबूर करते हैं कुछ में आपने बहुत संजीदा भाव को समेट लिया है
पुनः बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए और आपकी मेहनत के लिए .....

मित्रवर, इन अशआर के लिए अलग से ढेरों दाद कबूल करें


छोडकर सूरज सितारे चाँद, बच्चों की तरह,

जुगनुओं के आगे पीछे भागता रहता हूँ मैं॥

 

मौज़ पर बहते हुए पत्ते का है अंजाम क्या?  

बैठकर दरिया किनारे सोचता रहता हूँ मैं॥

 

कौन हूँ, क्या हूँ, कहाँ हूँ जी रहा हूँ किसलिए,

ख़ुद से “सूरज” आजकल यह पूछता रहता हूँ मैं॥

Comment by UMASHANKER MISHRA on August 13, 2012 at 11:35pm

बहेतरीन आला दर्जे की गजल है खास कर

ये शेर

छोडकर सूरज सितारे चाँद, बच्चों की तरह,

जुगनुओं के आगे पीछे भागता रहता हूँ मैं॥

 

मौज़ पर बहते हुए पत्ते का है अंजाम क्या?  

बैठकर दरिया किनारे सोचता रहता हूँ मैं॥

 

कौन हूँ, क्या हूँ, कहाँ हूँ जी रहा हूँ किसलिए,

ख़ुद से “सूरज” आजकल यह पूछता रहता हूँ मैं॥ डायमंड लाईने हैं

आखरी लाईन ....दार्शनिक पक्तियां है  

उम्दा गजल के लिए मुबारकबाद

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 13, 2012 at 7:01pm

छोडकर सूरज सितारे चाँद, बच्चों की तरह,

जुगनुओं के आगे पीछे भागता रहता हूँ मैं॥

कौन हूँ, क्या हूँ, कहाँ हूँ जी रहा हूँ किसलिए,

ख़ुद से “सूरज” आजकल यह पूछता रहता हूँ मैं॥

आदरणीय सूरज जी ये तो बड़ी अच्छी बात है काश आप से ही सब आत्मावलोकन सीखें तो आनंद और आये जय श्री राधे 
सुन्दर गजल ...
भ्रमर ५ 

 

 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 13, 2012 at 6:49pm

छोडकर सूरज सितारे चाँद, बच्चों की तरह,

जुगनुओं के आगे पीछे भागता रहता हूँ मैं॥-- क्या ज़बरदस्त शे'र कहा आपने!

वाह डॉ. साहब... आपकी प्रिय बह्र पर आपने एक और शानदार ग़ज़ल प्रस्तुत की! बहुत ख़ूब...

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 13, 2012 at 12:59pm
आदरणीय सूरज जी, बहुत सुंदर रचना। भाव बेहद अच्छे हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service