मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥
उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥
हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके,
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥
रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥
कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥
ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥
“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥
-- डॉ. सूर्या बाली “सूरज”
Comment
एक से बढ़ के एक
बधाई सर जी
आदरणीय बाली जी
बेहतरीन गजाल पर बधाई स्वीकार करें.
उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥.....अंदाज़ देखिये
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥..sateek
“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”Sir ...kya roushani dikhai hai
मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल(aaj tak)....Salman khursheed.
मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥---------------दूसरो को उपदेश देना बहुत आसन होता है
उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥------पता नहीं नीर समझते हैं या क्षीर
हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके,
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥------ओवर कान्फिडेंस
रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥----अपनों का किया घायल अधमरा जो हो जाता है
कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥-----यही होता है सब कुछ भूल जाते हैं
ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥------हहाहाहा--कटाक्ष !!!
“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥------चापलूसों से बचना ही चाहिए
वाह क्या शानदार ग़ज़ल लिखी है काफी दिन बाद लिखी है आपने बहुत उम्दा दाद कबूल करें
दिल झूम उठा, डॉक्टर साहब !
मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥
ये वो मतला है जो मसल हो जाता है. बहुत खूब !
हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके,
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥
कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥
ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥
“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥
उपरोक्त अश’आर बार-बार पढ़ रहा हूँ और बार-बार दाद कह रह हूँ. आपकी लगन ऐसी है कि आपकी मसरुफ़ियत झुक कर सलाम करे.
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ.
रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥
बहुत बढ़िया.......
ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥
इस अदा पर कुर्बान जाऊं ..... स्तरीय कटाक्ष ....... बेहतरीन कहन .... मज़ा आ गया डॉ . बाली साहेब .... लख -लख मुबारका
बहुत खूब डॉ साहब उम्दा शेर हुए हैं
बहरो रदीफो कवाफी इतने तंग हैं और उस पर भी क्या लाजवाब अशआर निकाले आपने
वाह वाह वा
ढेरो दाद कबूल करें
ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद ..........वो आजकल॥ best of lines
“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद .......वो आजकल॥ really good
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