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आदि शक्ति वंदना संजीव वर्मा 'सलिल'

आदि शक्ति वंदना


संजीव वर्मा 'सलिल'

*

आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.

रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....

*

पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.

चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....

*

अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.

कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..



परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.

दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..


जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.

चरण-शरण जग, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....

*

नाद, ताल, स्वर, सरगम हो तुम. नेह नर्मदा-नाद.

भाव, भक्ति, ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..



दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.

उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.


प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीन सभी आकार.

चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....

*

वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.

क्षमा, दया, करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..



मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-

करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.



ढाई आखर का लाया हूँ,स्वीकारो माँ हार.

चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....


**************

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 11, 2010 at 10:13am
आचार्य जी, बहुत ही सुंदर कृति है, सुंदर शब्दों का समावेश बहुत ही बढ़िया लगा, हम सबको आपकी रचनाएँ बहुत ही भाति है और नियमित पढते भी है |
आचार्य जी मैं आज ओपन बुक्स ऑनलाइन के ओपन मंच से यह स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूँ कि OBO का कभी भी लक्ष्य भीड़ जुटाना नहीं रहा है, हम लोगो का सदैव प्रयास रहा है कि OBO पर स्वच्छ छवि और स्वस्थ मानसिकता के लोग आये, यदि कोई सदस्य OBO पर ग़ज़ल कहते है तो हम रोक नहीं सकते, और यदि ग़ज़ल को लोग पसंद कर रहे है तो यह अच्छी बात है, OBO तो साहित्य के हर विधा का स्वागत करता है, हम लोग तो क्षेत्रीय भाषाओँ की साहित्य को भी सम्मान देने के लिये मांग के आधार पर अलग अलग ग्रुप बनाये हुये है |
Comment by sanjiv verma 'salil' on October 9, 2010 at 2:18pm
अब इन छन्दों को चाहनेवाले हैं ही कितने?, हम जैसे कुछ पुरातनपंथी ही इन्हें आजमाते रहते हैं. अह तो लंगडी-लूली, टूटी-फूटी जैसी भी लिखो गजल लिखने का दौर है. फिर भी आपका स्नेहादेश स्वीकारते हुए दिव्यनर्मदा पर दोहा स्तम्भ प्रारंभ कर रहा हूँ. हिंदी शब्द सलिला में वर्णक्रमानुसार शब्द और अर्थ देने का स्तम्भ बैठकी से प्रारंभ कर दिया है. यह लगभग ३ वर्ष चलेगा तथा २ लाख से अधिक शब्दों के अर्थ आदि क्रमशः दिये जायेंगे. हिंदयुग्म पर 'दोहा गाथा सनातन' में ६५ लेखों की श्रृंखला है. साहित्य शिल्पी में 'काव्य का रचना शास्त्र' शीर्षक से अलंकारों पर ७४ लेख हैं. जिन्हें रूचि हो देख सकते हैं. ओबीओ में अभी ग़ज़ल चलने दीजिए. भीड़ जुटाने का लक्ष्य इसी से पूरा होगा. हिंदी छंद भीड़ नहीं जुटाते. इन छन्दों पर तो आपकी भी अच्छी पकड़ है पर व्यर्थ श्रम करने से क्या लाभ?

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on October 8, 2010 at 8:42pm
आचार्य जी सादर प्रणाम
माँ शारदे की वंदना बहुत ही सुन्दर है|
ऐसी कामना है कि उनकी कृपा हम सब पर सदा ही बनी रहे|
नवरात्रि के पावन पर्व की ढेरों शुभकामनाएं|

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