न जाने भला या बुरा कर रहा है;
वो चिंगारियों को हवा कर रहा है; (१)
वो मग़रूर है किस कदर क्या बताएं?
हर इक बा-वफ़ा को ख़फ़ा कर रहा है; (२)
नहीं उसको कुछ भी पता माफ़ कर दो,
वो क्या कह रहा है, वो क्या कर रहा है; (३)
वो नादान है बेवजह बेवफ़ा की,
मुहब्बत में दिल को फ़ना कर रहा है; (४)
है जिसने भी देखा ये जलवा तेरा उफ़,
वो बस मरहबा-मरहबा कर रहा है; (५)
भुला दी हैं मैंने वो माज़ी की बातें,
तू अब बेवजह तज़किरा कर रहा है; (६)
भले आज़माइश कड़ी से कड़ी हो,
हमेशा बशर आज़मा कर रहा है; (७)
नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना,
वो हर बात पर मशवरा कर रहा है; (८)
भले लाख टुकड़े हुए आईने के,
वो सच तो हमेशा दिखा कर रहा है; (९)
***
Comment
भले लाख टुकड़े हुए आईने के,
वो सच तो हमेशा दिखा कर रहा है; .बहुत उम्दा गजल सदीप जी ,बधाई स्वीकार करें
सुप्रभात, संदीप वाहिदभाई. आपकी इस ग़ज़ल ने सुखद भावनाओं और संतुष्टिदायी प्रसन्नता से तर कर दिया है. फिलहाल की तमाम प्रविष्टियों के बीच आपकी प्रस्तुत ग़ज़ल उसी तरह लगी है जैसे तमाम जवाहरों के ढेर में किसी मणि की शान अप्रतिम हुआ करती है.
मतले के माध्यम से अभिव्यक्त किंकर्त्तव्यमूढ़ता मन को तुरत बाँध लेती है. सही कहूँ, मोह लेती है. बहुत ज़ानदार मतला हुआ है. रदीफ़ निर्धारण के लिये विशेष बधाई.
बाद के भी कई शेर ऊँची कहन की सुन्दर अभिव्यक्ति हैं. यथा, वो मग़रूर है... या, नहीं उसको कुछ भी.. या, नहीं उसके बस में.. .. वाह ! लेकिन, अंदाज़ तो देखिये इस शेर की-- है जिसने भी देखा ये जलवा तेरा.. बहुत खूब ! सानी नहीं भाईजी.
आखिरी शेर के लिये विशेष बधाई कुबूल करें. मन मुग्ध है और खोया हूँ आपकी ग़ज़ल में. आपके इस अंदाज़ को हार्दिक साधुवाद. बनाये रखें.
नोट : कल रात ही मैंने आपकी इस ग़ज़ल को देखा लिया था, संदीपजी. प्रतिक्रिया स्वरूप अपने मंतव्य भी रख रहा था किंतु कुछ टेक्निकल प्रॉब्लेम ऐसा कारण बना कि कनेक्शन बार-बार टूट रहा था और प्रतिक्रिया अपलोड ही नहीं हो पारही थी. ऐसा बहुत ही कम होता है कि किसी प्रविष्टि पर अपनी भावनाएँ साझा न होपाने का इतना कष्ट होता है.
संदीप जी अब तक आप जैसा कहते आये हैं यह ग़ज़ल उससे बहुत ऊपर की चीज है
आपने अक्सर चौकाया है मगर इस बार तो इंतिहा हो गयी
कुछ शेर तो मुझे लगता है आपने लिखे नहीं है, माँ सरस्वती ने आपसे लिखवा लिए है
यह तेवर बना रहे
आमीन
फिर भी
एक दो शेर और समय मांग रहे हैं उसकी इस वाजिब मांग को जरूर मानियेगा
आदरणीय अशोक जी...
आपसे समर्थन प्राप्त हुआ मैं कृतार्थ हुआ! सादर,
संदीप जी
सादर,
नहीं उसको कुछ भी पता माफ़ कर दो,
वो क्या कह रहा है, वो क्या कर रहा है; (३)
नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना,
वो हर बात पर मशवरा कर रहा है; (८)
वाह! बहुत खूब. बधाई स्वीकारें.
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