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गज़ल:कोल्हू चाक..

कोल्हू चाक रहट मोट की आवाज़ें,
शहरों से आयातित चोट की आवाज़ें.

मान मनोव्वल कुशलक्षेम पाउच और नोट ,
सबके पीछे छिपी वोट की आवाज़ें.

लूडो कैरम विडियो गेम के पुरखे हुए ,
बच्चों के हांथों रिमोट की आवाज़ें.

ध्यान रहे इस ताम झाम में दबें नहीं ,
आयोजन में हुए खोट की आवाज़ें .

मजबूरी में बार गर्ल बन बैठी वो ,
सिसकी पर भारी है नोट की आवाज़ें.

बेटा नहीं नियम से आता मनी-ऑर्डर,
कौन सुनेगा दिल के चोट की आवाज़ें.

मेरी स्मृतियों में अब भी टटका हैं ,
भूसा वाले घर की ओट की आवाज़ें.

नंदन चम्पक बालहंस और मधुमुस्कान ,
कहाँ गयीं वो लोटपोट की आवाज़ें.

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Comment by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 10:06am
नंदन चम्पक बालहंस और मधुमुस्कान बचपन था बेशक नादान ,इन से पाया आनंद महान
Comment by Abhinav Arun on October 10, 2010 at 8:13am
दीप जी नंदन चम्पक चंदामामा मधुमुस्कान और अनेक पत्रिकाएं , कामिक्स हमारे बचपन का अंग रहीं.ये सौभाग्य था .सृजन के बीज वहीं से पड़े शायद. ये शेर कह कर मुझे खुशी हुई थी आपके दिल को छू गया मेरी खुशकिस्मती .दिल से धन्यवाद.
Comment by Abhinav Arun on October 10, 2010 at 8:05am
नवीन जी आपकी टिप्पणी एडिट करूँ ऐसा साहस नहीं .मैं तो खुद ही खुलेपन का समर्थक हूँ. हर बात सामने होनी चाहिए .मैं शुरू से ही परंपरा से हटकर शेर कहने का प्रयास करता हूँ दुष्यंत .बशीर .वसीम आदि को पढकर गज़ल की ओर मुखातिब हुआ था दस बरस हो गए .न कोई मंजिल न कोई मुकाम .बस आप जैसे कुछ जानकारों के बूते सफर जारी है.ओ.बी.ओ. से बात दूर तक पहुँच रही है यही बड़ा संतोष है.
Comment by DEEP ZIRVI on October 9, 2010 at 11:49pm
नंदन चम्पक बालहंस और मधुमुस्कान ,
कहाँ गयीं वो लोटपोट की आवाज़ें
waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah bachpan mila dia hum se
Comment by Abhinav Arun on October 9, 2010 at 9:58am
वाह ! गज़ल भी अतीत को ताज़ा करने का ज़रिया बन सकती है , आशीष भाई धन्यवाद .
Comment by आशीष यादव on October 9, 2010 at 9:52am
वाह, कितना बढ़िया, सच में, बदलाव कितना हो गया है| भूसा वाली बात पर तो मुझे कई बात स्मरण हो गयी|| किसी और के घर में जब मै घुस गया था गुड निकलने| तब तो कोई रोक नहीं थी| बस १०-१२ साल पाहिले की बात है|
Comment by Abhinav Arun on October 9, 2010 at 9:38am
७ वां शेर कुछ ऐसे भी कहने को जी चाहता है-

"तुम भूलीं मेरे मन में अब भी ताज़ा,
भूसा वाले घर के ओट की अवाजें."

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