For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल:कोल्हू चाक..

कोल्हू चाक रहट मोट की आवाज़ें,
शहरों से आयातित चोट की आवाज़ें.

मान मनोव्वल कुशलक्षेम पाउच और नोट ,
सबके पीछे छिपी वोट की आवाज़ें.

लूडो कैरम विडियो गेम के पुरखे हुए ,
बच्चों के हांथों रिमोट की आवाज़ें.

ध्यान रहे इस ताम झाम में दबें नहीं ,
आयोजन में हुए खोट की आवाज़ें .

मजबूरी में बार गर्ल बन बैठी वो ,
सिसकी पर भारी है नोट की आवाज़ें.

बेटा नहीं नियम से आता मनी-ऑर्डर,
कौन सुनेगा दिल के चोट की आवाज़ें.

मेरी स्मृतियों में अब भी टटका हैं ,
भूसा वाले घर की ओट की आवाज़ें.

नंदन चम्पक बालहंस और मधुमुस्कान ,
कहाँ गयीं वो लोटपोट की आवाज़ें.

Views: 523

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 10:06am
नंदन चम्पक बालहंस और मधुमुस्कान बचपन था बेशक नादान ,इन से पाया आनंद महान
Comment by Abhinav Arun on October 10, 2010 at 8:13am
दीप जी नंदन चम्पक चंदामामा मधुमुस्कान और अनेक पत्रिकाएं , कामिक्स हमारे बचपन का अंग रहीं.ये सौभाग्य था .सृजन के बीज वहीं से पड़े शायद. ये शेर कह कर मुझे खुशी हुई थी आपके दिल को छू गया मेरी खुशकिस्मती .दिल से धन्यवाद.
Comment by Abhinav Arun on October 10, 2010 at 8:05am
नवीन जी आपकी टिप्पणी एडिट करूँ ऐसा साहस नहीं .मैं तो खुद ही खुलेपन का समर्थक हूँ. हर बात सामने होनी चाहिए .मैं शुरू से ही परंपरा से हटकर शेर कहने का प्रयास करता हूँ दुष्यंत .बशीर .वसीम आदि को पढकर गज़ल की ओर मुखातिब हुआ था दस बरस हो गए .न कोई मंजिल न कोई मुकाम .बस आप जैसे कुछ जानकारों के बूते सफर जारी है.ओ.बी.ओ. से बात दूर तक पहुँच रही है यही बड़ा संतोष है.
Comment by DEEP ZIRVI on October 9, 2010 at 11:49pm
नंदन चम्पक बालहंस और मधुमुस्कान ,
कहाँ गयीं वो लोटपोट की आवाज़ें
waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah bachpan mila dia hum se
Comment by Abhinav Arun on October 9, 2010 at 9:58am
वाह ! गज़ल भी अतीत को ताज़ा करने का ज़रिया बन सकती है , आशीष भाई धन्यवाद .
Comment by आशीष यादव on October 9, 2010 at 9:52am
वाह, कितना बढ़िया, सच में, बदलाव कितना हो गया है| भूसा वाली बात पर तो मुझे कई बात स्मरण हो गयी|| किसी और के घर में जब मै घुस गया था गुड निकलने| तब तो कोई रोक नहीं थी| बस १०-१२ साल पाहिले की बात है|
Comment by Abhinav Arun on October 9, 2010 at 9:38am
७ वां शेर कुछ ऐसे भी कहने को जी चाहता है-

"तुम भूलीं मेरे मन में अब भी ताज़ा,
भूसा वाले घर के ओट की अवाजें."

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service