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बचपन !
आज मन मेरा फिर मुस्कुराया है 

बचपन का दिन आज याद मुझे आया है 

यादों ने फिर एक गीत सुनाया है 

बचपन का दिन आज याद मुझे आया है…

 

स्कूल से घर आकर बसते का पटकना

तपती हुई धुप में बस यूँ ही भटकना

आइने के सामने मस्ती में मटकाना

पापा के कंधे पर जबरन ही लटकाना

चीजों की ज़िद में मैंने आंसुओं को बहाया है

बचपन का दिन आज याद मुझे आया है…

 

झूले पर चढ़ते थे, गिरते थे धपाक से 

गड्ढे  के पानी में कूदते थे छापक से 

पहेली के जवाब हम देते से फटाक से

पापा की हर बात को हम लेते थे मज़ाक से 

स्कूल के कपड़ो पर हमने दाग बहुत लगाया है 

बचपन का दिन आज याद मुझे आया है…

 

मोहल्ले के घरो से फलो का चुराना

रेलिंग से कूदकर फिर टाँगे तुडवाना 

भैया की साइकिल को हाफ पैडिल चलाना 

रस्ते पर गिर कर फिर अपनी पैंट फड़वाना   

छोटी सी उमरिया में मैंने खून बहुत बहाया है

बचपन का दिन आज मुझे याद आया है…

 

वो पकडम पकडाई और रजा मंत्री का खेल 

वो लूडो, वो सांप सीढी वो छुक छुक सी रेल

कभी घर बनाना कभी गुड्डे गुड़ियों का मेल

अब किसकी है बारी कौन पास कौन फ़ैल

हर खेल में छुटपन पसीने से नहाया है

बचपन का दिन आज याद मुझे आया है…

 

चूरन के चटकारे वो इमली मीठी खट्टी

छोटी छोटी सी बात पर झूट-मूठ की कुट्टी

गीली स्लेट  को कहना सुख सुख मेरी पट्टी

हर वक़्त सोचना कब होगी स्कूल की छुट्टी

स्कूल ना जाने का बहाना बहुत बनाया है

बचपन का दिन आज याद मुझे आया है…

 

वो किस्से, कवितायें, वो परियों की कहानी

दादी, नानी के घर वो छुट्टियां बितानी

जीभ से चखना पहली बारिश का पानी

जमा करना घर की हर चीज़  पुरानी

उन दिनों मैंने हर लम्हा मस्ती में बिताया है 

बचपन का दिन आज याद मुझे आया है…

 

आज मन मेरा फिर मुस्कराया है

 बचपन का दिन आज याद मुझे आया है

यादो ने फिर एक गीत सुनाया है

बचपन का दिन आज याद मुझे आया है …..

 रणवीर  प्रताप  सिंह 

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