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कविता--जीवन नहीं बीतता।

सांस चली जाती है।

क्योंकि सांस चलती है।

आत्मा चहुँ ओर व्याप्त है।

आत्मा नहीं मरती।

जीवन भी नहीं मरता।

जीवन चलता रहता है।

जीवन नहीं मरता।

जीवन नहीं बीतता।

मैं मर गया,तो जीवन थोडे ही मर जाएगा।

जीवन आत्मा स्वरूप है।

दुबारा कहूँ तो

परमात्मा स्वरूप है।

जीवन नहीं बीतता।

-----------------सूबे सिंह सुजान..............

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Comment by सूबे सिंह सुजान on August 17, 2015 at 5:26am
यह कविता पुनः पढ़ी । लक्ष्मण जी आभार
Comment by सूबे सिंह सुजान on August 18, 2012 at 3:32pm

जी, लक्ष्मण जी, आपकी प्रतिक्रिया पाकर बहुत खुश हुआ हूँ। आपके विचार भी मेरे विचारों से मिले हैं । यह भी उत्सुकता को जगाता है। और यह पढ कर मेरा रचना लिखने का श्रम पूरा होता है।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 18, 2012 at 9:39am
सही कहा भाई श्री सूबे सिंह सुजान जी, कि जीवन नहीं बीतता जीवन न्बाही मरता 
जीवन आत्मा स्वरुप है परमात्मा स्वरुप है, जीवन का एक कालांश बीतता है, और यह 
क्रम चलता ही रहता है | सुन्दर भाव समेटे रचना हेतु बधाई 

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