हाय रे ये इश्क़ की बेताबियाँ
ले रही हैं ज़िन्दगी अंगड़ाइयां
क्या कहूँ इस से ज़ियादा आप को
मार डालेंगी मुझे तन्हाइयां
आजकल मातम है क्यूँ छाया हुआ
सुनते थे कल तक जहाँ शहनाइयाँ
दौर है ये ज़ोर की आजमाइशों का
भिड़ रही हैं परवतों से राइयां
चल पड़ा हूँ मैं निहत्था जंग में
लाज रख लेना तू मेरी साइयां
इक जगह टिकती नहीं हैं ये कभी
मुझ सी ही नटखट मेरी परछाइयाँ
इतनी सुन्दर बीवियां दिखती नहीं
जितनी सुन्दर काम वाली बाइयां
'अलबेला' है मसखरा, शायर नहीं
ढूंढिए मत ग़ज़ल में गहराइयां
-अलबेला खत्री
Comment
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
सादर भाईजी.
आदरणीय, मैं चाहता तो ये था कि इसे एडिट कर के लगाऊं ....लेकिन फिर ख्याल आया कि जो मुझे लग रहा है वो सार्वजनिक क्यों न कर दूँ ताकि सभी मित्रों तक ये सन्देश पहुंचे कि पोस्ट करने से पूर्व भली भांति परख लेनी चाहिए रचना को.....अन्यथा बाद में तो डंडा लेकर महाप्रभु आने ही वाले हैं.....हा हा हा
आपके स्निग्ध स्पर्श ने गदगद कर दिया भाई जी.........
आपकी वीरू हो !
सादर
हा हा हा हा...........
क्या संशोधन हुआ है ! वाह !
सुना है, आपने भी अवश्य सुना होगा, आदरणीय, कि अपने उत्कर्ष के दिनों में जब सिर्फ़ नाम ही हर तरह से सक्षम हुआ करता था, नेहरूजी, छद्म नाम से अख़बारों में अपने ऊपर कड़ी से कड़ी विवेचना लिखते थे. उन लेखों में अपने कार्यों की खूब नुक़्ताचीनी किया करते थे. उनका तर्क़ था कि इससे वे अपनी ज़मीन नहीं भूल पाते. सब तरह से समरस रहते हैं.
आज आपको देखा खुद की ही लानतमलामत करते .. :-)))))))
जय हो.. . (वीरू ?) .. हा हा हा हा हा..........
आदरणीय महाप्रभु..........मैंने आपके आगमन की आहट पा कर ख़ुद ही सारे सुबूत मिटा दिए....हा हा हा
डंडे से बच गया .....
वीरू हो !
__सादर
लीजिये .. खुद ही कह दिया - ढूंढिए मत ग़ज़ल में गहराइयां
अब क्या कहा जाय. वर्ना कुछ पूछ बैठता. आजमाइश ही सही, पर कैसी ? :-)))
वाह वाह अलबेला जी.........बहुत खूब
क्या बात है
खूब कहा आपने
बस कहीं कहीं चूक कर दी है........ठीक कर लेंगे तो बेहतर होगा
हाय रे ये इश्क़ की बेताबियाँ
ले रही हैं ज़िन्दगी अंगड़ाइयां
क्या कहूँ इस से ज़ियादा आप को ________________दोस्तो
मार डालेंगी मुझे तन्हाइयां ____________________डस रही हैं नाग बन
आजकल मातम है क्यूँ छाया हुआ
सुनते थे कल तक जहाँ शहनाइयाँ _______________गूंजती थी कल
दौर है ये ज़ोर की आजमाइशों का _______________ज़ोर की आज़माइशों का दौर है
भिड़ रही हैं परवतों से राइयां
चल पड़ा हूँ मैं निहत्था जंग में
लाज रख लेना तू मेरी साइयां _________________मेरे
इक जगह टिकती नहीं हैं ये कभी
मुझ सी ही नटखट मेरी परछाइयाँ ______________हैं बड़ी
इतनी सुन्दर बीवियां दिखती नहीं
जितनी सुन्दर काम वाली बाइयां
'अलबेला' है मसखरा, शायर नहीं
ढूंढिए मत ग़ज़ल में गहराइयां
___धन्यवाद ...स्नेह बनाए रखिये
सादर
अरे अरे भाई जी ..........
आपके इस स्नेह के लिए मैं आकण्ठ ऋणी हूँ परन्तु जब भी कोई इस तरह मेरी पीठ ठोकता है शाबासी देने के लिए तो शर्म भी आती है
आपका बहुत बहुत धन्यवाद राजेश झा जी.........
सादर
सम्मान्य भाई वाहिद जी..........
ज़माना ऊँचा जा रहा है ...चाँद पर, मंगल पर.........ऐसे में गहराई केवल शायरी में ही ढूंढना क्या ज़रूरी है ?
कहना मत किसी से, मैं ख़ुद जानता हूँ कि इस ग़ज़ल में कोई दम नहीं....लेकिन मैं यह भी जानता हूँ आप जैसे गहरे मित्रों का प्यार यों ही मिलता रहा तो...आ जायेगी ग़ज़ल में भी आ ही जायेगी...
आपकी सराहना ..गदगद करती है
सादर
एक बेहतरीन गजल के लिए मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं, आपको पढ़ना एक पुरस्कार से कम नहीं लगा
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online