For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कंक्रीट के वृक्ष

यहाँ वृक्ष हुआ करते थे
जो कभी
लहलहाते थे
चरमराते थे
उनके पत्तों का
आपस का घर्षण
मन को छू लेता था
उनकी डालों की कर्कश
कभी आंधी में
डराती थी मन को  |
बारिश के मौसम की
खुशबू और ताज़गी
कुछ और बढ़ा देती थी
जीवन को  ||

उन वृक्षों की पांत
अब नहीं मिलती
देखने तक को भी
लेकिन , हाँ !
वृक्ष अब भी हैं
वही डिजाईन
वही उंचाई
शायद उंचाई तो कुछ
और भी ज्यादा हो
मगर इनसे हवा
नहीं मिलती
नहीं मिलती
इनसे खुशबू
न कोई आनंद
लेकिन
निश्चित ही
ये वृक्ष
पैसे उगलते हैं
जिसके लिए
हर कोई
पागल बना फिरता है
मगर इतने पर भी
इन वृक्षों से मोह
नहीं हो पाता
कैसे हो ! आखिर
हमने इन्हें सीमेंट से
जो सींचा है  |
भावनाएं कैसे समझेंगे
ये कंक्रीट के वृक्ष
हमारी भावनाओं का
घड़ा भी तो
इनके लिए रीता है  ||

Views: 750

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Yogi Saraswat on September 14, 2012 at 11:49am

बहुत बहुत आभार श्री अलबेला जी , आपका आशीर्वाद मिला

Comment by Yogi Saraswat on August 27, 2012 at 10:04am

आदरणीय सीमा अग्रवाल जी , सादर नमस्कार ! आपके दिए गए सुझाव का बहुत स्वागत करता हूँ ! अवश्य ही इस ओर ध्यान दूंगा , किन्तु मुझे यहाँ अपने शब्द बदलना नहीं आता , मैं नहीं जानता की यहाँ लिखे शब्द को कैसे ठीक किया जा सकता है ? किन्तु मैं अपनी डायरी में अवश्य संशोधन करूँगा ! बहुत बहुत आभार

Comment by seema agrawal on August 25, 2012 at 1:51pm

योगी जी  आप कर्कश के साथ ध्वनि शब्द लिख सकते हैं  यथा कर्कश ध्वनि 

घर्षण शब्द को हटा कर मात्र पत्तों की आवाज़ या  पत्तों के स्वर प्रयुक्त कर सकते हैं ..

यह सुझाव मात्रा है .......

Comment by Yogi Saraswat on August 24, 2012 at 11:31am

बहुत बहुत आभार , आदरणीय सीमा अग्रवाल जी ! आपका सहयोग , समर्थन और मार्गदर्शन मिला ! सीमा जी , असल में मुझे बहुत ज्यादा भाषा ज्ञान नहीं है इसलिए सिर्फ मन की आवाज़ को शब्दों में पिरो लेता हूँ ! आप मार्ग दर्शन करते रहेंगी तो शायद कुछ सुधार कर सकूं ! बहुत बहुत आभार

Comment by Yogi Saraswat on August 24, 2012 at 11:29am

बहुत बहुत आभार , आदरणीय श्री रक्ताले जी !

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 23, 2012 at 11:31pm

योगी जी

          सादर,

वृक्ष अब भी हैं
वही डिजाईन
वही उंचाई
शायद उंचाई तो कुछ
और भी ज्यादा हो
मगर इनसे हवा
नहीं मिलती
नहीं मिलती
इनसे खुशबू

बदलाव का समय चल पड़ा है. देखिये आगे आगे होता है क्या.

Comment by Albela Khatri on August 22, 2012 at 7:16pm

सादर

Comment by seema agrawal on August 22, 2012 at 5:41pm

अति भौतिकतावाद ,बढ़ती जनसँख्या ,पैसा कमाने की होड ने आज इंसान को ही artificial बना कर रख दिया है तो बनावटी चीज़ों से संवेदनाओं की क्या उम्मीद करना ...बहुत अच्छी प्रस्तुति सारस्वत जी 
उनकी डालों की कर्कश 
कभी आंधी में 
डराती थी मन को  |........पर सौरभ जी के प्रश्न को आपने नज़रंदाज़ कर दिया दरअसल कर्कश विशेषण है तो कोई संज्ञा तो जोड़िए उसके साथ 
उनके पत्तों का 
आपस का घर्षण ....घर्षण से कोई मनोहारी आवाज़ कैसे आयेगी थोड़े से परिवर्तन से आपकी रचना और निखर जायेगी 

Comment by Yogi Saraswat on August 22, 2012 at 3:59pm

सोनम सैनी जी , बहुत बहुत आभार आपका ! मेरे शब्द आपके पास तक पहुंचे ! सहयोग और समर्थन बनाये रखियेगा ! धन्यवाद

Comment by Yogi Saraswat on August 22, 2012 at 3:58pm

 आदरणीय श्री राजेश कुमार झा जी , सादर नमस्कार ! मेरे शब्दों को आपका आशीर्वाद मिला , अच्छा लगा ! सहयोग की कामना आगे भी करता हूँ ! धन्यवाद एवं आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122**भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आइन्सान को इन्सान बनाने के लिए आ।१।*धरती पे…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
6 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
10 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
14 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
19 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
19 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service