भाई-भाई बैरी बना, रोटियों में खून सना,
छा गया अँधेरा घना, देख आँख रो पड़ी |
भूल गए सब नाते, दूर से ही फरियाते,
काम देख बतियाते, कैसी आ गई घड़ी |
जहाँ कोई मिल जाए, नोंच-नोंच कर खाए,
देख गिद्ध शरमाए, बात नहीं ये बड़ी |
होश नहीं इश्क जगे, चाहे भले जाए ठगे,
गैर लगे सारे सगे, सोच कैसी है सड़ी ||
Comment
आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर.......उत्साहवर्धन के लिए आपका दिल से आभार........
जहाँ कोई मिल जाए, नोंच-नोंच कर खाए,
देख गिद्ध शरमाए, बात नहीं ये बड़ी |
भाई अजीतेन्दु जी, वाह वाह वाह !!.. . बहुत ही प्रभावी रचना.. बहुत-बहुत बधाई !!.. .
आदरणीय रक्ताले सर.......आपका हार्दिक आभार......आपका स्नेह सदा उत्साहवर्धन करता है.......
भाई-भाई बैरी बना, रोटियों में खून सना,
छा गया अँधेरा घना, देख आँख रो पड़ी |
सुन्दर घनाक्षरी गौरव जी बधाई स्वीकार करें.
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