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लो चुपके से तुमने ये क्या कह दिया,
सूनी वीणा के फिर तार बजने लगे
कलियाँ खिल के हंसीं मन मचलने लगा,
होंठों पे आज फिर गीत सजने लगे.
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सरसराती हुयी जब हवा ये चली,
घर का आँगन भी मेरा चहकने लगा.
तेरे आने की आहट से हलचल मची,
कोना कोना भी अब तो महकने लगा.
प्यार के बोल सुनने की खातिर प्रिये,
अपने बोलों को पन्छी भी तजने लगे.
कलियाँ खिल के हंसीं मन मचलने लगा,
होंठों पे आज फिर गीत सजने लगे.
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सांवली हो सलोनी हो चंचल हो तुम,
Comment
श्री दिनेश जी
रचना बहुत अच्छी है
शीघ्र पूरा कीजिये
आदरणीय सौरभ जी सही कह रहे है लगता है कुछ छूट गया है
सरसराती हुयी जब हवा ये चली,
घर का आँगन भी मेरा चहकने लगा.
तेरे आने की आहट से हलचल मची,
कोना कोना भी अब तो महकने लगा.
प्यार के बोल सुनने की खातिर प्रिये,
अपने बोलों को पन्छी भी तजने लगे.
कलियाँ खिल के हंसीं मन मचलने लगा,
होंठों पे आज फिर गीत सजने लगे.
सुन्दर शब्द कहे हैं आपने , किन्तु आपने शायद ध्यान नहीं दिया , आपकी रचना अधूरी रह गयी है ! कृपया इसे पूरी करके हमें अनुग्रहीत करें !
सुन्दर प्रयास भाई दिनेश जी, कृपया छूटा अंश भी पूरा कर लें , बधाई स्वीकार हो |
भाई दिनेश वर्माजी, आपकी सुन्दर रचना कॉपी पेस्ट होने में आधी छूट गयी है. हमें तुरत लाभान्वित करें, भाईजी.
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