स्वर में अमृत घोलो जी
फिर अधरों को खोलो जी |
नहीं खर्च कुछ होने का
मीठा – मीठा बोलो जी |.
देने वाला कैसे दे ?
हाथ मलिन हैं धो लो जी |
मन से पश्चाताप करो
प्रायश्चित कर रो लो जी |
नाव सम्हल ना पाएगी
इतना भी मत डोलो जी |
मान सहित घर पहुँचा दे
साथ उसी के हो लो जी |
जीवन में क्या दिया-लिया
मन को जरा टटोलो जी |
अधिक जागरण ठीक नहीं
चादर तानो सो लो जी |
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
Comment
बहुत सुन्दर भाव आदरणीय अरुण कुमार निगम सर.........बधाई स्वीकारें........
नहीं खर्च कुछ होने का
मीठा – मीठा बोलो जी |.
सरल सहज अभिवयक्ति कैसा चमत्कृत कर देती है
है न ......
अधिक जागरण ठीक नहीं
चादर तानो सो लो जी |
यह तो मेरे लिए हैं :)))))))))))))))
शुभ रात्रि
बहुत बढ़िया निगम साहेब ....... हल्के से गंभीर बात कहना बहुत बड़ी बात होती है . बधाई स्वीकार करें .
देने वाला कैसे दे ?
हाथ मलिन हैं धो लो जी |
बहुत सुन्दर .. . बहुत-बहुत सुन्दर .. .
फिरभी, काश, थोड़ी मशक्कत और होती. :-)))
सादर
बहुत खूब निगम साहिब, इस छोटी बहर पर बहुत ही कायदे से कहन को निभाते हुए बेहतरीन ग़ज़ल कही है , आनंद आ गया , मुबारकवाद कुबूल करें |
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