कोई तो बता दे जरा , हुयी क्या हमसे खता
जमाना बैरी हुआ , सब गैर हुआ ऐसी क्या की खता
बेटी बन जन्म लिया , कसूर बस इतना किया
चाहा था कि मैं भी भैया की तरह खूब पढूंगी
माँ-बाप का नाम रौशन करुँगी
देश का ऊँचा नाम करुँगी
अपने सब सपने साकार करुँगी
लेकिन जब समाज से हुआ सामना
न कोई सपना रहा न कोई अपना
ज़माने की ठोकर मिली और अपनों के ताने
क्यूँ तुने जन्म लिया ओ ! अभागी
मैं गरीब बाप तेरा कहाँ से दहेज़ जुटाऊंगा
दहेज अगर जुटा न पाया तो कहाँ से डोली उठाऊंगा
जमाना दुश्मन हो गया किस-किस से लड़ मैं पाउँगा ....
ओ मेरी बहना ! क्यूँ तुने मुश्किल किया जीना
तेरी ही चिंता है कैसे करूँगा मैं तेरा गौना
मैं बदनसीब माँ तेरी तुझसे करूँ यही दुआ
बेटी को न जन्म देना, करना ना मेरी सी खता .....
घुट-घुट रोऊँ, घुट-घुट जियूं, पल-पल सोचूं
क्यूँ मैंने जन्म लिया क्यूँ मैंने की ये खता
अब मैंने ये जाना की मेरी है क्या खता
बेटी हूँ मैं अभागी बस मेरी है यही खता ......
Comment
Welcome ............Parveen mam
Very well written.................... heart touching poem....................
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