For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रामकरन अपनी पत्नी मुनिया से बोले-"श्यामा की अम्मा हमार करेजा तौ मुंहके आवत बाय।श्यामा 14 साल की हुइ गई ओकर सादी करेक हा।"
"हां हो हमहुक इहै चिंता खाये जात बाय।चिट्ठी पाती भरेक पढ़िये चुकी है,अउर इ जमाना बहुत खराब बाय,पता नाहीं कहां ऊंचे नीचे पैर परि जाय,समाज में नाक कटि जाय।............तौ कहूं,कवनो लरिका देख्यो सुनयो नाई?"-मुनिया ने प्रश्न वाचक दृष्टि से देखते हुए कहा।
"रमई के लरिका मुनेसर हैं बम्मई कमात हैं औ उमरियो ढेर नाई 24-25 साल होई।"-रामकरन ने कहा।
श्यामा पास ही आंगन में रोटी सेंक रही थी।वह बोल पड़ी-"मुझे नहीं करनी है शादी,अभी तो मेरी पढ़ने की उम्र है।और आप सबसे मैं पढ़ने का पैसा भी नहीं लूंगी।सरकार लड़कियों के पढ़ने की व्यवस्था करती है।मुझे पढ़कर आई.ए.एस. बनना है।रही बात ऊंच-नीच पैर पड़ने की तो आप निश्चिंत रहें और अपनी बेटी पर विश्वास रखें।"

Views: 1015

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Archana Tripathi on July 25, 2015 at 8:32am
Vindheyeshvari Prasad Tripathi ji , आपकी रचना पढ़कर अच्छा लगा ।उसपर गुरुजनो और वरिष्ठजनों की समीक्षा बहुत कुछ सीखा रही हैं ,आशा हैं बविष्य(भविष्य ) में हमे भी इसी तरह मार्गदर्शन मिलेगा।
आज भी कन्याओं की शिक्षा पर आती बाधाओं पर प्रकाश डालती रचना क्व लिए बधाई आपको आदरणीय त्रिपाठी जी।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 12, 2012 at 7:03pm
ये प्रथम पद छूट रहा था जो इस प्रकार है-
"ऊधौ यहै सूधौ सन्देसो कहि दीजौ एक,
जानति अनेक न बिबेक ब्रजबारी हैं।"
त्रुटि की तरफ संकेत के लिए आभार गुरुदेव।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2012 at 6:15pm

कहै रतनाकर असीम रावरी तौ छमा,
छमता कहा लौ अपराध की हमारी है॥
दीजै और ताजन सबै जो मन भावे पर,
कीजै न दरस-रस वंचित बिचारी हैं ॥
भली हैं बुरी हैं और सलज्ज निरलज्ल हूं हैं,
जो हैं सो हैं पै परिचारिका तिहारी हैं॥"

एक पद छूट रहा है विंध्येश्वरी भाई. उसे भी प्रस्तुत करदें. आपका स्वाध्याय आपको रचनाकर्म हेतु आवश्यक धैर्य व संयम देता रहेगा. हृदय से बधाई.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 12, 2012 at 5:44pm
आदरणीय बागी जी!क्या कमाल करते हैं आप?
/टेढ़ा है पर मेरा है/ हा....हा.....हा......हा

धन्य हैं प्रभुवर धन्य हैं।

एक बार कसके डांटते है फिर दुलार जताते हैं।हठ को धृष्टता कहते हैं,और फिर रचना में संशोधन का गुरु भी नहीं बताते।आप 'धृष्ट' कहलो,'टेढ़ा' कहलो पर 'मेरा' कहने का लाज रखलो गुरुवर लाज रखलो।
जगन्नाथ दास रत्नाकर जी की पंक्तियां याद आती हैं-
"कहै रतनाकर असीम रावरी तौ छमा,
छमता कहा लौ अपराध की हमारी है॥
दीजै और ताजन सबै जो मन भावे पर,
कीजै न दरस-रस वंचित बिचारी हैं।
भली हैं बुरी हैं और सलज्ज निरलज्ल हूं हैं,
जो हैं सो हैं पै परिचारिका तिहारी हैं॥"
बस।
सादर।
Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 1:59pm

भाई बागी जी व सौरभ जी से सहमत ! इसे डिलीट करना उचित नहीं ! हाँ आप सभी के सुझाव के अनुसार इसे और भी बेहतर अवश्य बना सकते हैं ! सस्नेह


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2012 at 1:27pm

//क्या इस रचना को डिलीट कर दिया जाय?//

ऐसा करना ओबीओ की मूल प्रकृति से इतर जाने की बात होगी. गणेशभाईजी के कहे का शत्-प्रतिशत् अनुमोदन. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 12, 2012 at 1:22pm

//क्या इस रचना को डिलीट कर दिया जाय?//

किंचित नहीं, टेढ़ा है पर मेरा है :-) 

आपकी रचना एक थाती की तरह है जो समझने वालों के लिए एक कार्यशाला की तरह व्यवहृत होगी, इसलिए मेरे ख्याल से इसे हटाना गलत ही नहीं बल्कि पाप होगा |
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 12, 2012 at 1:11pm
आप सब गुरुजनों ने रचना पर सार्थक प्रतिक्रिया देकर मुझे लघुकथा के मूल को समझाने का गुरुतर कार्य किया है।सादर आभार।क्या इस रचना को डिलीट कर दिया जाय?
Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 9:33am

आदरणीय सौरभ जी के कथन में मेरी भी सहमति है | सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2012 at 9:30am

विंध्येश्वरीभाई, अपनी वैयक्तिक व्यस्तताओं के कारण मैं आपके पोस्ट पर पुनः अभी आ पारहा हूँ.

//कृपा कर यह भी सुझाने का कष्ट करें कि किस प्रकार इसे बिम्बात्मक बनाया जा सकता है?//

आपसे अनुरोध है कि इन्हीं पन्नों में कई-एक लघुकथा अनुभवी तथा समृद्ध रचनाकारों द्वारा प्रस्तुत की जा चुकी है. सभी को आप अवश्य पढ़ें और उनपर मात्र पाठकीय दृष्टिकोण न रख उन पर साहित्यिक रचनाकार की तरह मनन करें. यह अपनी लेखकीय क्षमता को विशिष्ट करने का सबसे अच्छा तरीका है.

कथा अथवा किसी रचना के कथ्य को बिम्ब के सापेक्ष प्रस्तुत करने से मेरा तात्पर्य यह था कि सपाटबयानी रचनाओं, विशेषकर लघुकथाओं अथवा पद्य-क्षणिकाओं, के मूल के विरुद्ध जाती है. लघु रचनाएँ जिनमें कथ्य सान्द्र रूप में प्रस्तुत होता है, सदा से घटनाओं और भावनाओं को इंगित किया करती हैं, न कि तथ्यों को जस का तस उकेर देती हैं.  एक साहित्यिक रचना प्रस्तुत करने में तथा पत्रकारिता के क्रम में रिपोर्ट प्रस्तुत करने में यही महती अंतर हुआ करता है.

विश्वास है, मैं अपने भावों को संप्रेषित कर पाया.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
15 hours ago
anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service