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प्रिय विंध्येश्वरी जी, मेरा उद्देश्य आपको हतोत्साहित करना नहीं है, किन्तु आप तो ओ बी ओ परंपरा को जानते ही है, उसी क्रम में मैं कहना चाहता हूँ कि इस पोस्ट में कथा है कहाँ ?
पूज्य गुरुदेव श्री सौरभ जी सादर प्रणाम!आपने रचना में जिस कमी की तरफ संकेत किया है उस तरफ मेरी दृष्टि ही नहीं जा सकी।क्षमा प्रार्थी हूं।कृपा कर यह भी सुझाने का कष्ट करें कि किस प्रकार इसे बिम्बात्मक बनाया जा सकता है?बस छोटा सा सुझाव देनें की कृपा करें।
आदरणीय त्रिपाठी जी
सादर, सरकार के प्रयास और कन्या के विश्वास को खूब उभारा है आपने. सुन्दर लघुकथा पर बधाई स्वीकारें.
त्रिपाठी जी ,बहुत अच्छा प्रयास ,हार्दिक बधाई
भाई विंध्येश्वरीजी, आपकी लघुकथा प्रारम्भ में अपनी रौ में ही बहती दीखती है, आंचलिकता को यथोचित निभाती. इसके लिये आप बधाई के पात्र हैं. परन्तु इसका अंत सपाट हो गया है. श्यामा के मुँह से तथ्यों को सुनना सरकारी विज्ञापन की तरह लगता है. जबकि उसके कथन को बिम्बात्मक किया जा सकता था.
भाईजी, लघुकथा का विन्यास भले छोटा होता है, परन्तु उसका आकाश अत्यंत ही विस्तृत होता है.
बहरहाल, आपके प्रयास को पुनः बधाई.
आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी.......राउर ई कहानी में भाव भी नीमन बा आउर संदेस भी.......एगो बेटी जे पढ़े के चाहतिया ओकरा बियाह के झमेला में डाले के हक कौनो के नइखे......
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