एक राष्ट्र एक टोली, एक भाव एक बोली,
हिंदी से ही हो सकेगी, आप जान जाइए |
भाषा ये सनातनी है, शीलवाली, पावनी है,
शोला है सुहावनी है, विश्व को बताइए |
पूर्वजों ने भी कहा है, हिंदी ने बड़ा सहा है,
हिंदी को बढ़ावा दे के, विद्वता दिखाइए |
भारती की कामना है, शत्रु को जो थामना है,
भाई मेरे बंधु मेरे, हिंदी को बचाइए ||
Comment
वाह वाह
भाषा ये सनातनी है, शीलवाली, पावनी है,
शोला है सुहावनी है, विश्व को बताइए |
बहुत खूब !
शब्द प्रवाह और लय सच में बहुत अच्छा लगा घनाक्षरी में हिंदी जैसे उत्कृष्ट विषय पर लिखा आपको बधाई बस जो सौरभ जी को बात खल रही है वो मुझे भी लग रहा है इसकी अंतिम पंक्ति में संशोधन करेंगे तो एक बेहतरीन घनाक्षरी का रूप ले लेगी
आदरणीय गुरुदेव......आपका आशीर्वाद एक स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया के रूप में पा के बहुत खुशी हुई......साथ-साथ आपकी दी हुई एक और सीख जो हमेशा की तरह उपयोगी है.....आपका बहुत-बहुत आभार.......
भाई अजीतेन्दु जी, आपकी घनाक्षरी के शब्द-प्रवाह पर आपको हार्दिक बधाई. हिन्दी के प्रति आपकी भावनाओं को हम हृदय से महसूस करते हैं.
लेकिन एक बात : इतने अच्छे प्रारम्भ के आगे अंत दुर्बल दीख रहा है. काम-धाम छोड़ कर हिन्दी को बचाना समझ में नहीं आया. दूसरे, वीर औ महान स्वयं को कोई थोड़े न कहता है.
कथ्य की तार्किकता को भी लेकर चलना उचित होगा.
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