उत्तरदायित्व
कार्यालय में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी का माहौल था । नये साहब प्रभार ग्रहण कर रहे थे जो कड़े अनुशासन और अपने सख्त स्वभाव के लिए जाने जाते हैं | प्रभार ग्रहण करने के साथ ही उन्होंने पहला सवाल दागा - "कार्यालय की कार्यावधि क्या है ? और, सभी कर्मी कब तक कार्यालय आ जाते हैं |"
"सर कार्यालय अवधि सुबह १० बजे से शायं ५ बजे तक है और सभी कर्मचारी अमूमन ११ बजे तक आ ही जाते हैं."
"अब ऐसा नहीं चलेगा, कल से सबकी उपस्थिति सुबह १० बजे देखी जायेगी | नियम नियम होता है मेरे कार्यकाल में सभी कार्य नियम कानून से ही होगा, आखिर मुझे भी तो ऊपर वालों को मुँह दिखाना होता है |"
आज सभी कर्मचारियों का वेतन बिल हस्ताक्षर कराने बड़े बाबू साहब के पास पहुंचे थे |
"बड़े बाबू, सभीका वेतन बिल बन गया है ना, कोई छूटा तो नहीं ?"
"सर ... सभी के बिल तैयार हैं केवल गोपाल चौकीदार का बिल नहीं बना है, वो पिछले ६ माह से कैंसर का इलाज करा रहा है, उसका परिवार महंगा इलाज कराते-कराते कंगाली की हालत में आ गया है, पिछले महीने तक तो पुराने साहब उसका वेतन बनवा देते थे |"
"तो... ? .. इस बार उसका वेतन बिल क्यों नहीं बना ?"
"सर ! आप ही ने कहा था न, कि नियम नियम होता है, इसलिए इस माह उसका बिल छोड़ दिया गया |"
"बड़े बाबू जाइए और तुरत गोपाल का वेतन बिल बना लाइए, मुझे ऊपर वाले को भी मुँह दिखाना है |"
Comment
आदरणीय गणेश जी बागी जी बहुत ही मार्मिक कथा है
बड़े साहब की यह लाईन .....मुझे ऊपर वाले को भी मुँह दिखाना है | बढ़िया लगी
बहुत बहुत बधाई
आदरणीया सीमा अग्रवाल जी, लघु कथा की आत्मा तक पहुच कर सराहना हेतु बहुत बहुत आभार, सचमुच आपकी टिप्पणी बहुत ही उत्साहवर्धन करती है |
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया रेखा जोशी जी,
आदरणीया सीमा जी के कथन से मैं भी सहमत हूँ आदरणीय गणेश जी..! सादर,
कोई भी लघु कथा जब अचानक किसी एक शब्द से चौँका जाती है तो सच में विशेष हो जाती है 'ऊपर वालों 'और 'ऊपर वाले' शब्द नायक की बाह्य प्रशासनिक व्यवस्था और आत्मिक व्यवस्था दोनों के संतुलन के परिचायक हैं विशेष सन्देश के साथ प्रस्तुत इस लघु कथा के लिए बहुत बहुत बधाई गणेश जी
शुभ्रांशु भाई, दरअसल आपको देखते ही आपकी हास्य रचना के किरदार मुझे गुदगुदाने लगते है | वैसे इन अंकेक्षक बंधुओं से दो चार हम लोग होते रहते है | पुनः आपका आभार |
प्रतिक्रिया को अनुमोदन करने के लिये आभार गणेश भाई जी.
बनवारी जी तो केवल आवाज लगाते हैं.मैने तो अंकेक्षक (auditor) की बात की थी.. ये CAG ने दिमाग खराब कर दिया है...सब पर आंकडो़ का भूत सवार है और मैने भी उसी बहाव मे कह दिया.
मेरी हास्य रचना के पात्रों को सम्मान देने के लिये एक बार फ़िर से आपको धन्यवाद.
स्वागत है मित्रवर
आदरणीया डॉ प्राची जी, आप ने जो लघु कथा की आत्मा तक पहुच कर टिप्पणी की है उसके लिए बहुत बहुत आभार, सच में ऐसी टिप्पणियाँ बहुत ही सबल प्रदान करती हैं | पुनः आभार आपका |
//बिना कार्य के वेतन देना... अंकेक्षक तो इस बात पर अपनी रिपोर्ट लगा सकता है, पहले भी होता आ रहा है, फ़िर से शुरु कर दिया...//
शुभ्रांशु भाई साहित्य में "मुजरिम हाज़िर" नहीं चलेगा :-))) हम सब तो अक्षरों के उपासक है उसमे अंकों का क्या काम, और जब अंक ही नहीं होंगे तो अंकेक्षक की क्या जरुरत | आप जरा बनवारी भाई को दूर ही रखिये |
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online