लघु कथा : विरोध
यह तकरीबन रोज़ का ही किस्सा था कि कालोनी के बच्चे भोली भाली तूलिका का खिलौना छीन लेते और वह रोते-रोते घर आती और हर बार उसकी मम्मी समझा बुझाकर उसे शांत करा देती | आज शाम उसके मम्मी पापा बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे, तभी तूलिका भागी भागी घर आई और उसके पीछे रोते हुए राहुल को लेकर उसकी मम्मी भी आ पहुंची |
"देखिए बहन जी, आपकी बेटी ने मेरे राहुल को कितना मारा" राहुल के गाल पर पड़े चांटे का निशान दिखाते हुये राहुल की मम्मी बोलीं |
"तूलिका इधर आओ, तुमने राहुल को क्यों मारा"
"मम्मी पहले राहुल ने ही मेरी गुड़िया छीनी थी, तभी मैंने उसे मारा"
"बहन जी, तूलिका अभी बच्ची है, मैं समझा दूंगी, आइन्दा वो ऐसा नहीं करेगी"
राहुल की मम्मी भुनभुनाते हुए चली गई |
लेकिन न जाने क्यों तूलिका के डैडी मंद मंद मुस्कुरा रहे थे, अत: तूलिका की मम्मी पूछ ही बैठी,
"क्या बात है जी, आप बिटिया की इस हरकत से बहुत खुश नज़र आ रहे हैं ? "सच कहा जी, मैं आज वाक़ई बहुत खुश हूँ, आज हमारी बिटिया विरोध करना सीख गई है |"
*************************************************************************************************************************
Comment
सही है विनम्रता अच्छी बात है पर ज़ुल्म सहना कायरता ।
शुभ्रांशु भाई, उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार |
आदरणीय नीरज जी, लघुकथा को सराहने और उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभार |
आदरणीया किरण आर्या जी, आपकी टिप्पणी यह कहने में सक्षम है की आपने इस लघुकथा को दिल से महसूस की हैं , सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया |
कईदिनों के बाद नेट पर आ पाया हूँ...विचार देने में देरी के लिये माफ़ी चाहता हूँ...
मैं बता बहीं सकता इस कथा ने मुझे कितनी दूर तक अपना सा लगा है...अभी कुछ दिनों पहले ही ऎसी ही खुशी मुझे मिली थी...वैसे इलाहाबाद में दो बालिकाओं ने मनचलों के खिलाफ़ विरोध का बिगुल तो फ़ूँक दिया ही था...शायद इसे ही कहते हैं कथा को मूर्तरूप देना...
एक उत्प्रेरक कथा के लिये बधाई..
गणेश जी आपकी लघुकथा गागर में सागर समान है इसे पढ़ मुझे मेरी बेटी के बचपन की एक घटना याद आ गई एक बार वो नीचे खेलने गई और एक छोटे बच्चे ने उसको काट लिया वो रोते हुए घर आई तो मैंने कहा की वो तुमसे छोटा था और फिर भी उसने तुम्हे काट लिया तो बोली मम्मा देखो जब मैंने उसे कुछ नहीं कहा तो उसने ये किया गर मैं कुछ कहती तो ना जाने वो क्या हश्र करता मेरा.........और मैं मुस्कुराये बिना ना रह सकी.......आप सभी से बहुत कुछ सीखने को मिलता है यहाँ........शुभं
आदरणीय गणेश सर........सही सन्देश देती रचना.....हार्दिक बधाई.........
गणेश जी वाह वा बुरी आदत नहीं है मगर अति तो हर चीज के बुरी होती है
:))))
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय बागडे साहब |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online