लघुकथा : सुहागन
Comment
Dr Prachi Singh जैसा ही मैं भी सोच रहा था। अंत जबरदस्त है और उसके लिए आप बधाई के पात्र हैं। कृपया कोशिश करें की पूरी लघुकथा खड़ी बोली में हो।
आदरणीय डॉ प्राची जी , कम उम्र में बच्चों की शादी और वो भी इस पैशाचिक तरीके से करना एक विकृति मानसिकता का द्योतक है जो आज भी हो रहें हैं , जो एक सभ्य समाज हेतु बहुत ही दुखद है, इसी सब बातों को कहने का प्रयास भर है यह लघुकथा , लेखक कितना सफल है यह तो आप गुनी पाठक ही जाने । अपने बहुमूल्य विचारों को साझा करने हेतु बहुत बहुत आभार डॉ साहिबा ।
कथा को सराहने हेतु आभार विवेक मिश्रा जी ।
सभ्य समाज के कुछ हिस्सों हिस्सों में आज भी यह पैशाचिक प्रथाएं व्याप्त है, सोच कर दुख होता है.
विवाह जिसे दो आत्माओं का मेल कहा जाता है, दो परिवारों, संस्कृतियों का समन्वय माना जाता है, उसका ऐसा निकृष्ट रूप जहाँ बलात यह गठबंधन हो जाए, इसमें न केवल लडकी की बल्कि लड़के की भी पूरी ज़िंदगी तबाह हुई दिखती है.
परिवार संस्था की नींव को किसी षडयंत्र के पत्थर से रखना, कितना शोचनीय है, वहीं इस तरह के बलात विवाहों के पीछे के कारणों को समझा जाना भी ज़रूरी है. क्या कन्या पक्ष की समस्या का समाधान यही हो सकता था....या यह सिर्फ विकृत मानसिकता की परिणति है...
कन्या की उम्र भी सिर्फ १५ वर्ष ही है, तो क्या कारण रहा होगा ऐसे जबरन विवाह का, यह स्पष्ट नहीं होता..
कहानी का अंत झकझोर देने वाला है.
बधाई इस संवेदनात्मक अभिव्यक्ति के लिए. सादर
आपकी कथा पढ़कर पिछले साल देखी हुई, नेशनल अवार्ड प्राप्त फिल्म 'अंतर्द्वन्द' की याद आ गई.
अंतिम पंक्ति सचमुच निःशब्द कर देती है. हार्दिक बधाई बागी जी.
सराहना हेतु बहुत बहुत बधाई आदरणीय विशाल चर्चित जी |
आभार वीनस जी |
समाज के एक कलुषित रूप को दर्शाती हुई एक मर्मस्पर्शी कहानी......जो छोड गयी कई विचारणीय तथ्य.....कई सवाल........हृदय से बधाई स्वीकार करें बागी भाई जी......!!!!
सही है
एक घिनौनी परिपाटी का सटीक और स्पष्ट चित्रांकन किया
आदरणीय बागी जी, आपका स्वागत है. जब लेखन उम्दा होता है तो दाद में मेयार आ ही जाता है! इसलिए धन्यवाद के पात्र आप हैं, मैं नहीं. सादर.
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