For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समय के साथ सब बदलता गया , यादें धुंधली होती चली गयी. वो दिन जब स्कूल जाने की चिंता तो थी ; मगर उसी के साथ बेफिक्र ज़िन्दगी जिसमे न तो घर गृहस्ती की चिंता और न ही काम धंधे की फिक्र थी. ये कहानी राजस्थान के एक ऐसे गरीब ब्राह्मन परिवार के लड़के की है जिसका नाम " रवि " था , मगर जो अपने परिवार में रौशनी नहीं कर सका .माँ बाप ने उसके लिए अपनी सारी जिंदगी यूँ ही गुज़ार दी .. समय बीतता चला गया वो अपनी जिंदगी के २१ साल पूरे कर चुका था और उसे जिस मुकाम पर पहुंचाने का सपना उसके माँ बाप का था वो कभी पूरा न हो सका .. मोहल्ले के आवारा लडको के साथ गलत आदतों ने उसे अपने काबू में कर लिया था , ऐसा लगता था मानो उसे संस्कार ही ऐसे दिए गए हो ..पर कसूर किसी का नहीं था एक " समय " ही ऐसी चीज़ है जिस पर किसी का बस नहीं चलता .

उनके परिवार में उसकी दो बड़ी बहने भी थी " सुरभि " और "रश्मि " वो दोनों इतनी होशियार थी की उन्होंने अपनी पढाई के साथ - २ शिक्षिका की नौकरी करके अपने परिवार को आर्थिक सहारा दिया .जिसकी कोई माँ - बाप उम्मीद भी नहीं करता . वो भी आखिर कब तक करती, क्योंकि लड़कियां तो वैसे भी "पराया धन " होती हैं . एक के बाद एक दोनों का विवाह अच्छे घर में हो गया और वो माँ -बाप को अपने हाल पर छोड़ कर चली गयी ! रवि को तो मानो और आज़ादी मिल गयी थी ..एक घर था वो भी उसने बुरी संगतों के कारण गिरवी रख दिया था ! समय बीतता चला गया और बुरी आदतें बढती चली गयी , शराब पीना ,जुआ खेलना ये सब तो आम हो चुका था .

आखिर एक दिन ऐसा समय आ ही गया जब पूरे परिवार को उस बुरे वक़्त के आगे घुटने टेकना पड़े ..अचानक उसके पिता का हृदयघात से निधन हो गया .. माँ भी कोमा में चली गयी और कोई साथ देने वाला न मिला .. यहाँ तक की रवि को तो शायद अब भी अपनी गलती पर पछतावा नहीं था ..

आज माँ को उसकी बड़ी बेटी ने अपने घर पर रख रखा है जो की हिन्दू धर्म और रीती रिवाजों के अनुसार शायद ही कहीं देखने को मिलता है ..कई बार उन्होंने इस बात को स्वीकारा है की शायद इस नालायक बेटे की जगह एक बेटी और भी हो जाती तो हमें ये दिन देखना नहीं पड़ता. वर्तमान में जहाँ लड़के और लड़की में कोई भेदभाव नहीं माना जाता ..फिर भी अगर किसी घर में बच्चा जन्म लेने वाला होता है तो ज्यादातर लोग लड़के की ही चाहत रखते हैं . .शायद यही दिन देखने के लिए ...

लेखक ,
मुकेश शर्मा , उज्जैन .

Views: 480

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mukesh Sharma on September 23, 2012 at 3:02pm

पाण्डेय जी बहुत बहुत धन्यवाद् !

Comment by Shubhranshu Pandey on September 23, 2012 at 12:01pm

एक सुन्दर कथा.... बधाई

Comment by Satish Agnihotri on September 19, 2012 at 10:16pm

इस प्रस्तुति हेतु बधाई.

Comment by Mukesh Sharma on September 19, 2012 at 8:34pm

बहुत बहुत धन्यवाद् सौरभ जी और गणेश जी मेरी कहानी  पसंद करने के लिए और अपने महत्वपूर्ण सुझाव के लिए  , अगली बार  में कुछ और अच्छा पेश करने की कोशिश करूँगा..

मुकेश शर्मा, उज्जैन.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 19, 2012 at 2:59pm

कहानी ’समय’ में दो धाराएँ हैं एक अग्रगामी तो दूसरी उसके विपरीत. आंचलिक मान्यताओं की धारा को सार्वभौमिक बहाव बना कर प्रस्तुत नहीं किया जाना चहिये. एक कहानीकार के तौर पर आपको दोनों धाराओं को समदिशा करना होगा.

इस प्रस्तुति हेतु बधाई.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 19, 2012 at 1:38pm

लड़का और लड़की, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, पारिवारिक संस्कार, वातावरण आदि बच्चों को बनाते और बिगाडते हैं, माँ बाप को शर्मिंदगी के आलम में बेटा और बेटी दोनों ही धकेलते हुए दिख जायेंगे, बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं है, समाज में अब यह अवधारणा धीरे धीरे पनप रहा है, किन्तु अभी भी बहुत लोग इस बात को समझ नहीं पा रहे,

सुन्दर अभिव्यक्ति है, किन्तु कथा शिल्प पर और मेहनत की जरुरत है | बधाई इस अभिव्यक्ति पर |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service