For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

मूक रूदन
सहमे लब, खामोश आखर..
हृदय क्रंदित 
सूखी मरू सम, नयन गागर..
रिक्ततामय
शून्य विस्तृत, श्याम सागर..
क्षुद्र लोभन 
डाह विषमय, मनस अंतर..
नव्य चेतन 
सृजन स्नेहिल, बरसे जलधर..
स्वर्ण सम फिर 
दिव्य दमके, पूर्ण भूधर..

Views: 593

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 15, 2013 at 10:50am

रचना की सराहना व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोर जी

Comment by vijay nikore on April 15, 2013 at 3:02am

दार्शनिक संकेतों से भरपूर, उज्जवल भाव।

पढ़ कर मन आनन्दित हुआ।

 

सादर,

विजय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 3, 2013 at 12:25pm

आपकी गुणग्राह्यता के लिए साधुवाद आ. प्रदीप जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 1, 2012 at 3:45pm

सिखने को मिलता है 

बधाई सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2012 at 12:29pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,

आप तक रचनाओं का सूक्ष्म भी सहजता से पहुँच जाता है, इसलिए आपके द्वारा रचनाओं पर समीक्षा पाना सदैव ही नव ऊर्जा का संचार करता है, व लेखन उत्साह को बढाता है.... इस सूक्ष्म दृष्टि के साथ विवेचना कर बधाई सम्प्रेषण हेतु हार्दिक आभार .
मानव जीवन में व्याप्त एकाकीपन, डर, ख़ामोशी, रिक्तता, सबका मूल कारण इन्द्रिय ग्रस्त लोभन ही नज़र आता है... दिलों में निःस्वार्थ प्रेम ही नयी चेतना का संचार कर सकता है, जिससे सम्पूर्ण विश्व स्वर्णिम आभा से उज्जवल हो सकता है..... यही लिखना चाहा था, यह संप्रेषित हो पाया तो लेखनीं की सार्थकता है..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 1, 2012 at 10:56am

मानवीय अन्वेषी विचारधारा, भले हम उसे मनोवैज्ञानिक सोच की संज्ञा दे दें, भौतिक स्वरूप के सूक्ष्म-तत्त्व को छूता है जो वस्तुतः चार अवयवधारी अंतःकरण है. डॉ.प्राची, आपकी इस रचना में भौतिक स्वरूप में दीखते उदार विन्यास का कारण बड़े ही सांकेतिक रूप से हुआ है. सूक्ष्म वैसे भी संकेतों में ही व्याख्यायित हो सकता है.

आशा और निराशा के बीच असंतुलन में दीखती मनोदशा को आखिरकार प्रकृति आशा की किरणों से आच्छादित करती है, नव-सृजन संभावनाओं को जीवित रखता है, रचनाकार की दृष्टि से इन विन्दुओं को देखना भला लगा.

एक अलग तरह की रचना के लिये आपको बहुत-बहुत बधाई, डॉक्टर साहिबा.  .. सादर ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2012 at 9:29am

इस रचना पर आपकी सराहना और प्रोत्साहन  हेतु हार्दिक  आभार आदरणीय अरविन्द जी 

Comment by Arvind Chaudhari on September 30, 2012 at 9:48pm

बेहद ख़ूबसूरत कविता...शब्दों का सही इस्तेमाल


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2012 at 3:12pm

आपके अनुमोदन  हेतु आभार शालिनी कौशिक जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2012 at 3:12pm

इस रचना के शब्द व भाव आपको पसंद आये , इस हेतु आपकी आभारी हूँ शिखा कौशिक जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
22 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service