आंखें करे शिकायत किनसे
वही व्यथा क्यों ढोते हैं
बीज वपन तो करता मन है
वे नाहक क्यों रोते हैं
पलकों की बंदिश में हरदम
क्यों वे रोके जाते हैं
और तड़पते देह यज्ञ में
समिधा से झोंके जाते हैं
उनके नभ अंगार भरे क्यों
नीरव जल में ज्वार भरे क्यों
उनकी अनुपम तरूणाई में
इतने व्रण क्यों होते हैं
आंखें करे शिकायत किनसे
उन्हें प्राण क्यों पीते हैं
कोरे-कच्चे काजल ही क्यों
उनको सुलभ सुभीते हैं
बंजारे उनके सपनों के
होते सुरभित ठौर कहां
कतरन-उतरन मिल जाते हैं
मिलते हैं पर तौर कहां
उनको यह संसार मिला क्यों
अश्रु का आगार मिला क्यों
उनके फूलों की क्यारि में
इतने तृण क्यों होते हैं
आंखें करे शिकायत किनसे......
Comment
आदरणीय सौरभ जी, राजेश कुमारी जी, अम्बरीश जी,बागी जी, शैलेन्द्र जी एवं सीमा जी आप सबके स्नेह से पूर्ण शब्दों ने अभिभूत कर दिया । आप सबका मार्गदर्शन मिलना कम बड़ी बात नहीं । जो त्रुटियां बताई गई हैं वे वास्तव में हैं । दरअसल लिखते वक्त कभी-कभी शब्द खो जाते हैं और जब तब ज्ञानी गुणी जन उसकी ओर ईशारा नहीं करें ध्यान ही नहीं जाता है । सीमा जी का विशेष आभार कि उन्होंनें इतने अच्छे सुझाव दिए । अत्यंत विनम्रता के साथ क्षमा प्रार्थी हूं । बस इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें कसावट भी आती रहेगी । वैसे भी कहते हैं कि बिना गुरू ज्ञान नहीं होता, सादर
भाई राजेश कुमार झाजी, आपकी प्रवहमान पंक्तियों का मैं सदा से शैदाई रहा हूँ. लेकिन कभी-कभी पंक्तियों में स्पष्टता आँकने के फेर में प्रश्नों से या प्रश्नों में उलझ जाता हूँ. निम्नलिखित बंद में वही या वे कौन हैं ?
आंखें करे शिकायत किनसे
वही व्यथा क्यों ढोते हैं
बीज वपन तो करता मन है
वे नाहक क्यों रोते हैं .. .
पलकों की बंदिश में हरदम
क्यों वे रोके जाते हैं
और तड़पते देह यज्ञ में
समिधा से झोंके जाते हैं
बावज़ूद इसके कि इस कविता में गेयता अंतर्निहित है, इसकी पंक्तियों में मात्राओं की छूट ली गयी है. यह निश्चित है.
शुभच्छाएँ
बहुत सुन्दर गीत लिखा बधाई हो राजेश कुमार जी सीमा जी के कहे अनुसार थोड़ा सा संशोधन गीत में चार चाँद लगा देगा
और हाँ आपको आँखों के अनुसार चार मात्रा चाहिए किन्तु आँखें स्त्री लिंग से गीत में आगे गड़बड़ हो रही है अर्थात आँख के लिए पुर्लिंग में लोचन ले सकते हैं दोनों जरूरतें पूरी हो जायेगी चार मात्रा और पुर्लिंग
//पलकों की बंदिश में हरदम
क्यों वे रोके जाते हैं
और तड़पते देह यज्ञ में
समिधा से झोंके जाते हैं//
राजेश कुमार जी, सुन्दर भावों से सुशोभित इस गीत की रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ! आदरणीय बागी जी व आदरेया सीमाजी से मैं भी सहमत हूँ ....शिल्प के आधार पर इस गीत में अभी बहुत कसावट की आवश्यकता है !
आंखें किनसे करे शिकायत,
व्यथा वही क्यों ढोते हैं,
बीज वपन तो करता है मन,
नाहक क्यों वो रोते हैं |
सुन्दर भाव, रचना को और प्रवाहमय बनाते तो आनंद आ जाता, बधाई राजेश कुमार झा जी, इस अभिव्यक्ति पर |
//उनके नभ अंगार भरे क्यों
नीरव जल में ज्वार भरे क्यों
उनकी अनुपम तरूणाई में
इतने व्रण क्यों होते हैं// बहुत ही सुंदर भावाभियक्ति जो कि पाठक अनवरत बांधे रखने का प्रयास रखती है
सुन्दर गीत पर हार्दिक बधाई
बहुत सुन्दर गीत .......
बीज वपन तो करता मन है
वे नाहक क्यों रोते हैं..................बहुत सुन्दर पंक्तियाँ पर राजेश जी आँखे तो स्त्रीलिंग है
और तड़पते देह यज्ञ में
समिधा से झोंके जाते हैं......यह दोनों पंक्तियाँ भी बहुत प्रभावशाली हैं पर एक बार bold अक्षरों को देखिएगा
अश्रु का आगार मिला क्यों .........अश्रू हो गया है यहाँ आप चाहें तो नयन नीर आगार मिला क्यों कर सकते हैं या उर्दू शब्द से कोई परेशानी न हो तो अश्कों का आगार कर लीजिये क्योंकि आपके यहाँ ४ मात्राएँ चाहिए अश्रु में तीन ही हैं
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