For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


(ये मेरी पहली कोशिश है ग़ज़ल लिखनें की... जहाँ गलती हो कृपया करके बे'झिझक बताएं... शुक्रिया...!!)


सख्त रास्तों पर भी आसान सफ़र लगता है...
ये मुझे माँ की दुआओं का असर लगता है...!!

हो जाती है, बोझिल आँखें जब रोते-रोते...
माँ से फ़िर मुश्किल चुराना ये नज़र लगता है...!!

नहीं आती नींद इन मखमली बिस्तरों पर...
माँ की थपकियों का यादों में जब मंज़र लगता है...!!

सोचती हूँ कैसे चुकाऊं पाउंगी क़र्ज़ मैं तेरा...
ममता के समंदर में मेरा प्यार इक लहर लगता है...!!

एक अरसा हुआ मेरी माँ नहीं थी सोई, जब...
मैंने इक बार कहा था माँ मुझे रातों को डर लगता है...!!

ना रहा जब से साया मेरी माँ का मुझपे...
जानें क्यों बेगाना-सा मुझे मेरा घर लगता है...!!

लम्हा कोई हो, हर पहर हो चली सहर लगता है...
तुझसे मिलनें को माँ 'चाहत'-ऐ-दिल को क्यों रास्ता अब ज़हर लगता है...!!

::::::::जूली मुलानी::::::::
::::::::Julie Mulani:::::::

Views: 1024

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Julie on October 22, 2010 at 11:52am
शुक्रिया ताहिर जी... "अज़ेर" जी की "घज़ल्शाला" हमनें ज्वाइन की हुई है पर वक़्त की कमी की वजह से वहां उपस्तिथ नहीं हो पाती... कोशिश करुँगी... और जो आपनें कहा उसे भी ज़ेहन में रख के अगली बार ग़ज़ल लिखूंगी... बहुत बहुत शुक्रिया आपना हौंसलाअफजाई का...!! :-)
Comment by विवेक मिश्र on October 22, 2010 at 10:24am
'एक अरसा हुआ मेरी माँ नहीं थी सोई, जब...
मैंने इक बार कहा था माँ मुझे रातों को डर लगता है...!!'
ग़ज़ल लिखने के लिए उम्दा ख्यालों का होना सबसे जरूरी होता है और आपके इस शे'अर ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया.
क्योंकि मुझे भी 'बहर' आदि का ज्यादा ज्ञान नहीं है, इसलिए ग़ज़ल लिखने के दौरान, बस दो चीज़ें, मैं अपने ज़ेहन में रखता हूँ. दोनों मिसरों (पंक्तियों) की लम्बाई लगभग समान रहे और ग़ज़ल के हर शे'अर को पढने में एक बराबर का ही वक़्त लगे. शुरूआती दौर में, आप भी ऐसे ही प्रयास कर सकती हैं.. बाकी इस विषय पर और ज्यादा जानकारी के लिए, आदरणीय पुरुषोत्तम अब्बी 'अज़ेर' साहब की 'ग़ज़लशाला ' वाली क्लास ज्वाइन करें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"अच्छी रचना हुई है ब्रजेश भाई। बधाई। अन्य सभी की तरह मुझे भी “आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा”…"
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"बेहतरीन अशआर हुए हैं आदरणीय रवि जी। सभी एक से बढ़कर एक।"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश नूर भाई। बहुत बधाई "
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आभार रक्षितासिंह जी    "
12 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"अच्छे दोहे हुए हैं भाई लक्ष्मण धामी जी। एक ही भाव को आपने इतने रूप में प्रकट किया है जो दोहे में…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. रक्षिता जी, दोहों पर उपस्थिति, और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
12 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय !"
14 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"बहुत खूब आदरणीय,  "करो नहीं विश्वास पर, भूले से भी चोट।  देता है …"
14 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय,  सत्य कहा आपने । निरंतर मनुष्य जाति की संवेदनशीलता कम होती जा रही है, आज के…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. रक्षिता जी, एक सार्वभौमिक और मार्मिक रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सादर प्रणाम,  आदरणीय"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service