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गज़ल के विषय में मेरा ज्ञान ना के बराबर भी शायद ही हो, फिर भी प्रयास कर रहा हूँ ! आशा है, आशीष रहेगा !

 

तुमसे  जो  चंद  बात में कुछ पल ठहर गया !

जरा  खबर  ना  हुई  बड़ा  लम्हा गुज़र गया !

 

अमृत  ही  पाने  को निकला था सफर पे मै !

पीछे  मधु  की  बूंदों  के  सारा  सफर गया !

 

हुनर-ए-जमात  यूं  तो  मेरे  भी  पास  थी !

दौर-ए-नुमाईश  में  मगर  सब  हुनर  गया !

 

जीत  के  हर  वक्त  में  बाजू-ए-यकीन था !

पर जो हारा दोष सब किस्मत पे  धर  गया !

 

कल  को  बनाने  में  सारी जिन्दगी गुज़री !

कल तो बन नही पाया आज भी बिखर गया !

 

आरजू-ए-जिन्दगी  थी  क़यामत  दौर  तक !

पर  करम  ऐसे किए कि जीते जी मर गया !

 

                                                                                  -पियुष द्विवेदी ‘भारत’

 

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Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 13, 2012 at 7:49am

आदरणीय रेखा जी, बहुत बहुत धन्यवाद !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 13, 2012 at 7:49am

वीनस भाई जी, प्रयत्न जारी है ! [मार्गदर्शन हेतु आभार आपका !

Comment by वीनस केसरी on October 13, 2012 at 12:59am

पियुष जी,
ज्ञानी तो कोई खुद को घोषित नहीं कर सकता
बहरहाल आपसे निवेदन है कि शिल्प की बारीकियों को समझने का प्रयत्न जरूर करें 

Comment by Rekha Joshi on October 12, 2012 at 10:05pm

कल  को  बनाने  में  सारी जिन्दगी गुज़री !

कल तो बन नही पाया आज भी बिखर गया !उम्दा गजल पर हार्दिक बधाई पियूष जी 

 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 12, 2012 at 8:59pm

आदरणीय वीनस भाई, इस गज़ल-विषयक अज्ञानी को सराहने हेतु बारम्बार धन्यवाद !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 12, 2012 at 8:58pm

आदरणीय गणेश जी, सादर धन्यवाद ! आपकी बात पर प्रयास रहेगा !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 12, 2012 at 8:57pm

आदरणीय प्रभाकर जी, आपने इस प्रयास को सराहा, तो ये सफल हुवा !  आगे भी मेरा प्रयास जारी रहेगा ! साभार धन्यवाद !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 12, 2012 at 8:55pm

आदरणीय सौरभ जी, बधाई हेतु धन्यवाद !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 12, 2012 at 1:59pm

पियुष जी, एक मसल साझा कर रहा हूँ, ’थोड़े कहे को बहुत समझना’. 

प्रथम प्रयास के लिये बधाई.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 11:01am

आपको ग़ज़ल कहते देखना बहुत ही सुखकर लगा भाई पियूष जी. आपके पास कहन है शिल्प का ज्ञान आने में भी देर नहीं लगेगी, प्रयासरत रहें.  जिसके इस सद्प्रयास हेतु आपको दिल से बधाई देता हूँ.    

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