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गज़ल के विषय में मेरा ज्ञान ना के बराबर भी शायद ही हो, फिर भी प्रयास कर रहा हूँ ! आशा है, आशीष रहेगा !

 

तुमसे  जो  चंद  बात में कुछ पल ठहर गया !

जरा  खबर  ना  हुई  बड़ा  लम्हा गुज़र गया !

 

अमृत  ही  पाने  को निकला था सफर पे मै !

पीछे  मधु  की  बूंदों  के  सारा  सफर गया !

 

हुनर-ए-जमात  यूं  तो  मेरे  भी  पास  थी !

दौर-ए-नुमाईश  में  मगर  सब  हुनर  गया !

 

जीत  के  हर  वक्त  में  बाजू-ए-यकीन था !

पर जो हारा दोष सब किस्मत पे  धर  गया !

 

कल  को  बनाने  में  सारी जिन्दगी गुज़री !

कल तो बन नही पाया आज भी बिखर गया !

 

आरजू-ए-जिन्दगी  थी  क़यामत  दौर  तक !

पर  करम  ऐसे किए कि जीते जी मर गया !

 

                                                                                  -पियुष द्विवेदी ‘भारत’

 

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 12, 2012 at 9:28am

प्रिय पियूष जी, जो कुछ मैं कहना चाहता था उसे वीनस भाई कह चुके है, यदि आपका पहला प्रयास यह है तो मेरा दावा है कि आप बहुत आगे जा सकते है, आपमें संभावनायें बहुत है, बस प्रयास करें और इसी ग़ज़ल को २२१ २१२१ १२२१ २१२ पर बैठाने का प्रयास करें |

आसानी के लिए एक धुन बता देता हूँ , उसी धुन में आप इस ग़ज़ल को गुनगुनाइए .......

हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया ....

इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें |

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2012 at 12:56am

तुमसे  जो  चंद  बात में कुछ पल ठहर गया !

पियुष जी,
यह पहली पंक्ति ही आपके अंदर छुपे शायर को बज़्म में खड़ा करने के लिए पर्याप्त है जो जनकारों तक यह बात पहुंचा रही है कि आपमें अपार संभावना है
आपको बता दूं कि यह पंक्ति एक बहर जिसकी मात्रा २२१ २१२१ १२२१ २१२ पर बिलकुल फिट बैठ रही है

रदीफ काफिया का पालन भी आपने ब-खूबी किया है और कहन भी आपके पास दमदार है
बस बात बहर पर आ कर अटक रही है मगर पूरा विश्वास है कि ओ बी ओ मंच पर बने रहे तो यह अटकाव भी जल्द ही आपके प्रयासों के प्रवाह के आगे टिक नहीं सकेगा 
आने वाला कल आपना है बशर्ते आप मेहनत से जी ना चुराएं और तिलक जी की क्लास को मन लगा कर पढ़ें और समझें 
शुभकामनाओं सहित
सादर

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 11, 2012 at 10:10pm

धन्यवाद आदरणीय रक्ताले जी.......

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 11, 2012 at 8:17pm

पियूष जी

            सादर, गजल कि बहुत अधिक जानकारी नहीं है किन्तु सभी आशार बहुत सुन्दर लगे. बधाई स्वीकारें.

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 11, 2012 at 12:24pm

बहुत बहुत धन्यवाद संदीप भाई जी....

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 11, 2012 at 12:18pm

आदरणीय पियूष जी सादर
आपके इस प्रयास को बहुत बहुत बधाई
आशा करता हूँ अगला प्रयास और भी अच्छा और सुखद होगा

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 11, 2012 at 12:02pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी.... आपको ये गज़ल बेहतर लगी, ये जानकार बहुत अच्छा लग रहा है ! बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद ! यूं ही स्नेहाशीष कायम रखें !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 11, 2012 at 10:04am

कल  को  बनाने  में  सारी जिन्दगी गुज़री !

कल तो बन नही पाया आज भी बिखर गया !------पूरी ग़ज़ल के साथ इस शेर के लिए विशेष दाद कबूल करें 

कृपया ध्यान दे...

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