कभी गुलामी के दंशों ने , कभी मुसलमानी वंशों ने
मुझे रुलाया कदम कदम पर भोग विलासीरत कंसो ने
जागो फिर से मेरे बच्चों शंख नाद फिर से कर डालो
फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो||
मनमोहन धृष्टराष्ट बन गया कलयुग की पहचान यही है
गांधारी पश्चिम से आकर जन गण मन को ताड़ रही है
भरो गर्जना लाल मेरे तुम माँ का सब संकट हर डालो
फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो ||
टू जी आवंटन का रेला ओलम्पिक में चौसर खेला
खाद्यानो में घोल रहे हैं महंगाई का जहर विषैला
विषधर ना बन पायें कल ये सभी सपोले दफना डालो
फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो ||
पन्ने बीते कल के खोलो मैंने कितने वीर जने हैं
तिलक मेरी मिटटी का करके लाल मेरे रणवीर बने हैं
कालिख पोते इन दुष्टों के काट मुंड गर्जन भर डालो
फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो ||
फिर मेरे गौरव को सोने की चिड़िया का ताज लगा दो
इन दुष्टों के काले धन को चौराहे पर आग लगा दो
नहीं चाहिए मुझको जूठन भूखे शेरों घात लगा लो
फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो ||..........मनोज
Comment
shukriya aap sabhi mitron ka
आज कल के हालात को देखकर ये शब्द निकलने लाजिम हैं बहुत रोष और ओज पूर्ण कविता बहुत बहुत बधाई
इस जोशीले सामयिक गीत की जितनी तारीफ़ करें कम होगी, बहुत बहुत बधाई इस रचना पर.
वाह वाह क्या खूब लिखा है मनोज जी आपने सुन्दर गीत
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