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अर्थ रह गए गलियारों में शब्द बिक रहे बाजारों में

अर्थ रह गए गलियारों में शब्द बिक रहे बाजारों में

रचनाओं के सृजन कर्ता भटक रहे हैं अंधियारों में ।।

केवट भी तो तारक ही था जिसने तारा तारन हारा

कलयुग में ये दोनों अटके विषयों के मझधारों में ।।

कृष्ण नीति की पुस्तक गीता सच्चाई को तरसे देखो

हर धर्म धार दे रहा बेहिचक आतंकी के औजारों  में ।।

मंदिर मस्जिद घूम रहा है धर्म नहीं है जिस पंछी का

धर्म ज्ञान को रखने वाला झुलस रहा है अंगारों में ।।

धर्मों के बोझे हैं भारी थक कर चूर हो गया इन्सां

शांति युद्ध की स्वरलहरी अब सुनते हैं परिवारों में ।।

रावण के पुतले को मिलकर आग लगाने वालों सुन लो

पंडित सच्चा लड़ा विष्णु से राक्षस एक हजारों में ।।

सीता को सम्मान सहित था रखा राज्य में ये भी पढ़ लो

बारम्बार प्रणाम राम को छोड़ा जिसने गलियारों में ।।

कुछ अपने संस्कारों के भी आओ थोडा दर्शन कर लो

नोची अबला किसी गिद्ध ने सिद्ध बने जो अखबारों में ।।......मनोज

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Comment

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Comment by seema agrawal on October 24, 2012 at 10:16pm

प्रस्तुति के लिए बधाई मनोज जी ........

मंदिर मस्जिद घूम रहा है धर्म नहीं है जिस पंछी का

धर्म ज्ञान को रखने वाला झुलस रहा है अंगारों में ।।..बहुत बढ़िया बात कही आपने 

Comment by Manoj Nautiyal on October 24, 2012 at 9:26pm

sabhi mitron ko shubhkaamnayen evam sabko happy duseehara 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2012 at 8:24pm

//कुछ अपने संस्कारों के भी आओ थोडा दर्शन कर लो

नोची अबला किसी गिद्ध ने सिद्ध बने जो अखबारों में//

वाह मनोज जी वाह, शब्द भलें तीखें हो पर अर्थ से मुह नहीं मोड़ा जा सकता, बहुत ही सार्थक रचना रची है, इस अभिव्यक्ति पर बहुत बहुत बधाई और दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार हो |

Comment by रविकर on October 24, 2012 at 12:28pm

शुभ विजया ||
सादर -


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 24, 2012 at 11:35am

बहुत बढिया प्रस्तुति मनोज जी बधाई एवं शुभ कामनाएं 

कृपया ध्यान दे...

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