For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : मुझसे नज़रें न तू मिलाया कर

बहर : २१२२ १२१२ २२ [इस बहर को ११२२ १२१२ २२ भी लेने की छूट होती है]

 

मुझसे नज़रें न तू मिलाया कर

की है तौबा न यूँ पिलाया कर

 

जिस्म उरियाँ हो रूह ढँक जाए

ऐसे कपड़े न तू सिलाया कर

 

कई रिश्ते तो नींव तक काँपें

यूँ कमर अपनी मत हिलाया कर

 

अभी अनशन से उठ के आया है

उसे इतना भी मत खिलाया कर

 

आइना जिस्म ही दिखाता है

आइने पर न तिलमिलाया कर

Views: 430

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2012 at 6:07pm

rajesh kumari जी, बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2012 at 6:06pm

Saurabh Pandey जी, बहुत बहुत शुक्रिया जनाब। आपसे सहमत हूँ कि अभी और समय इस पर देना पड़ेगा। आपसे उत्साहवर्द्धन और मार्गदर्शन दोनों समान रूप से प्राप्त होते हैं। आभारी हूँ। स्नेह बनाए रखें।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2012 at 6:05pm

वीनस केसरी जी, भाई आपने सही पकड़ा है। त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद। इसे ठीक कर देता हूँ।

अगर शे’र स्पष्ट नहीं है तो इसे कारखाने में डालना ही बेहतर है। शे’र अगर स्वतः स्पष्ट नहीं है तो वो शे’र है ही नहीं। :)

दो शे’र पसंद आए इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 22, 2012 at 5:52pm

अच्छी ग़ज़ल कही है धर्मेन्द्र जी बधाई आपको 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 22, 2012 at 6:51am

वाह ! यह ग़ज़ल आसन्न हेतु उदाहरण सदृश है ! कई अश’आर अच्छे हुए हैं. कुछ समय की कमी का अभी तक रोना रो रहे हैं.  लेकिन खुद ही आपने स्वीकारा भी है -

आइना जिस्म ही दिखाता है
आइने पर न तिलमिलाया कर.. . . 

:-))))

बधाई स्वीकार करें, भाईजी.

Comment by वीनस केसरी on November 22, 2012 at 3:48am

धर्मेन्द्र भाई वाह वा क्या कहने
यह दो अशआर विशेष रूप से पसंद आए -
खूबसूरत  ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई

आइना जिस्म ही दिखाता है
आइने पर न तिलमिलाया कर

जिस्म उरियाँ हो रूह ढँक जाए
ऐसे कपड़े न तू सिलाया कर

इस शेअर की कहन मुझे स्पष्ट नहीं हो सकी ...कृपया बताएं कि आपने क्या कहा है ...

है टिकी जिनकी कब्र पर दुनिया
ऐसे अरमान मत जिलाया कर

 

//  बहर : २१२ २१२ १२२२ [इस बहर को ११२ २१२ १२२२ भी लेने की छूट होती है] //
भाई आपने अरकान को गलत तोडा है यदि उचित समझें तो सुधार कर यह कर लें -
बहर ए खफीफ की मुज़हिफ सूरत  : २१२२ / १२१२ / २२ [इस बहर को ११२२ / १२१२ / २२ भी लेने की छूट होती है]

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service