शौहर की मैं गुलाम हूँ बहुत खूब बहुत खूब ,
दोयम दर्जे की इन्सान हूँ बहुत खूब बहुत खूब .
कर सकूं उनसे बहस बीवी को इतना हक कहाँ !
रखती बंद जुबान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
उनकी नज़र में है यही औकात इस नाचीज़ की ,
तफरीह का मैं सामान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
रखा छिपाकर दुनिया से मेरी हिफाज़त की सदा ,
मानती अहसान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
वे पीटकर पुचकारते कितने रहमदिल मर्द हैं !
उन पर ही मैं कुर्बान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
'नूतन' ज़माने में नहीं औरत की कीमत रत्ती भर ,
देखकर हैरान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
शिखा कौशिक 'नूतन'
Comment
बहुत खूब बहुत खूब
बधाई
कृपया बाहरी लिंक न दें , ओ बी ओ नियमानुसार यह निषेध है ।
कथ्य सुन्दर है, यह रचना "ग़ज़ल" बन सकती थी यदि "गुलाम और इंसान के साथ काफिया निर्वहन होता तो, बधाई इस रचना पर शिखा जी |
yogi ji -yah gazal shikha ji ki hai .
उनकी नज़र में है यही औकात इस नाचीज़ की ,
तफरीह का मैं सामान हूँ बहुत खूब बहुत खूब
बहुत खूब , सुन्दर अल्फ़ाज़ , क्या बात है ! एक एक आश'आर बहुत दमदार और काबीले tareef . शालिनी जी , बधाई !
शौहर की मेल डोमिनेन्स से कोमल नारी ह्रदय में पहुँचने वाली पीढ़ा को सटीक अभिव्यक्ति मिली है, हार्दिक बधाई प्रिय शिखा जी
शालिनी जी, उर्दू शब्दों को हम लोग हिंदी रचनाओं में धड़ल्ले से प्रयोग करते है, उर्दू शब्दावलियाँ आज वर्गविशेष तक सिमित नहीं है, इस रचना को केवल एक सन्दर्भ में देखना कही न कही रचनाकार के साथ अन्याय होगा और उसकी रचना को हम सिमित कर देंगे, इस रचना की व्यापकता को समझना होगा |
ganesh ji ,choonki shikha ji ne yahan ''shauhar ''shabd ka istemal kiya hai isliye inki ye prastuti ek muslim mahila ke jyada kareeb hai aur muslim mahilaon kee sthiti kuchh kuchhhai bhi aisee hi.vaise sampoorn nari jagat bhi ise apne par lagoo kare to harz to kuchh hai nahi sachchai bhi yahi hai.
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